Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ (४०) मनखांतशुं ॥ उपर आपुं हो तरुणी हुँ ताजां तंबोल, षट्कतु सुख जोगवो नली जातशुं ॥ ॥जव माहे हो नमतां काल अनंत,दश दृष्टांते ए नरजवदोहेलो॥ तेह पामी हो पूरव पुण्य संयोग,उत्तम जननो योग न सोहेलो ॥ ए॥ एणी परे होसमजाव्यो निज स्वाम, धेर जश् मात पिताने पाये नम्यो ॥ पेखी हो हो सहु तस परिवार,सहसा वियोग तणोपुःख उपशम्यो ॥ १० ॥ लीलावती हो लागी सासुने पाय,बहु पुत्र जणजो आशीष दीधी इसी ॥ उंगणीशमी हो ढाले उदयरतन्न,वदे श्रोता सहु सुणजो मन उबसी ॥११॥ ॥दोहा॥ ॥ सुख संसारनां लोगवे, दोगंडुक जेम देव ॥ नर नारी ते नेहगुं, दान दीए नित्यमेव ॥ १॥जलवट ने थलवट तणा, वणज करे वमहब ॥ सुमतिविलास मति आगलो, सहु काजे समरन ॥२॥अनुक्रमे तसु अंगज थयो, नामे वीरविलास ॥ नणी गणी लायक थयो, तव परणाव्यो तास ॥३॥ साते देत्रे ते सदा, लखमी लाखगमेह ॥खरचे मनखांते करी, जेम आषाढी मेह॥४॥णे अवसर आव्या तिहां, धर्मघोष सूरींद ॥ सुमतिविलास सपरिकरे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48