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॥ अथ ॥
॥ पंमित श्री उदयरत्नजी महाराजकृत लीलावती राणीने सुमतिविलासनो रास प्रारंभः ॥
॥ दोहा ॥
॥ परम पुरुष प्रभु पास जिन, सरसती सद्गुरु पाय ॥ वंदी गुण लीलावती, बोलुं बुद्धि बनाय ॥ १ ॥ लीला लहेर लीलावती, सुमति विलास समुद्र ॥ दिव्य गाशुं ए दंपती, उत्तम गुणे अक्षुद्र ॥ २ ॥ कोण ते दंपती किहां हवां, यदि थकी खाचर्ण ॥ कहुं तेणे जे जे करयां, सांजलजो धरी कर्ण ॥ ३ ॥ गुण थुणतां गुणवंतना, निर्गुण पंण गुणवंत ॥ थाये थोमा कालमां, लीला मुक्ति लहंत ॥ ४ ॥
॥ ढाल पहेली ॥ काढबानी देशी ॥
॥ जंबूद्वीप मकार, जरत नामे हो क्षेत्र बे तेहनो ॥ जोय पांच सें विस्तार, उपर बबीश हो कला बे जेहनो ॥ १ ॥ मध्य जागे मनोहार, राजे गिरिवर हो वैताढ्य रूपा तणो ॥ ते उपर निरधार, विद्याधरनो हो वास सोहामणो ॥ २ ॥ गंगा सिंधु दोय, सरिता
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सखिले हो पूरे वहे सदा ॥ साधे चक्रवर्ती सोय,षट् खंम तेणे हो थाय जाणो मुदा ॥३॥जनपद सहस बत्रीश, वसे ते मांहे हो झछि विराजता ॥ आरज साढा पचवीश, अनार्य अनेरा हो उफत गाजता ॥४॥ ते नरतदेवनी मांहे, कोसंबीपुरी हो वसे कोशे करी ॥ पुरीथी प्राये, अधिकी उपे हो विविध रतने नरी ॥५॥ लांबी जोयण बार, नव जोयण पोहोली हो नित्ये नवनवा ॥ उत्सव थाये अपार, श्रीजिननुवने हो जन जिहां अनिनवा ॥६॥ सरोवर सरिता श्राराम, विधविध वारु हो वृदनी आवली ॥ अवतरीया जेणे गम, बहा जिनवर हो बबी तेणे जलहली ॥७॥ वीरने वांदवा काज, रवि शशी आव्या हो जिहां मूल विमानशु॥सुणजो जन संकेत, जिहां सोहावी हो मृगावती ज्ञानशुं ॥७॥ चउटा चोराशी चंग, हाटनी हारो हो सोहे मनोहारिणी॥आकाशे दीसे उत्तंग, जिहां प्रासादे हो ध्वजा जयकारिणी ॥ ए॥ कनकसेन तिहां राय, राज्य करे बे हो राणी तेहने ॥ सुरसुंदरी सुखदाय, जोवा चाहे हो सुर पण जेहने ॥ १०॥ शेठ सदाफल नाम, वम अधिकारी हो वसे व्यवहारीयो । आवास तेहना
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उद्दाम, धने करीने हो धनद पण हारीयो ॥ ११॥ सेजलदे अनिधान,सुंदरी तेहनी हो सोहे शीले करी॥ रूपे रंज समान, पातल पेटी हो पीन पयोधरी ॥१॥ अंगज तेहने एक,वये करीन्हानोहोपण गुणे बेवमो॥ सुमतिविलास सुविवेक,रूपे निरुपम हो पुरमा परगडो ॥ १३॥ थोमी तेहने रीस, थोमा बोलो हो थोमो नूख्यो वली ॥ बल बुद्धि बहुल जगीश, शरीर सुकोमल हो कला घणी निर्मली ॥१४॥ बत्रीश लक्षणो बाल, अनुक्रमे भणतां हो यौवनजर थयो ॥ए कही पहेली ढाल,उदय पयंपे हो उदय अधिक लह्यो॥१५॥
॥दोहा॥ ॥सुमति विलास अति सुघम, चतुर मनोहर चाल ॥ सोवन वान सोहामणो, ढले नारंगा गाल ॥१॥ वेधक विनयी वरणागीयो,जाणे देवकुमार ॥ अवनी उपर अवतस्यो, अद्जुत रूप अपार ॥२॥ चूना चंदन अरगजे, नीनो रहे भरपूर ॥ काया कुंकुम लोलसी, सिंहलंको अति शूर ॥३॥ एक दिन पुरनी शेरीए, सरिखा साथे लेय ॥ नगर जोवाने मीसस्यो, नूषण अंग धरेय ॥४॥
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(४) ॥ ढाल बीजी ॥ तट यमुनानो रे अति रलि
___ यामणो रे ॥ ए देशी॥ ॥ तेणे प्रस्तावे रे एक पन्नंगना रे,बेठी ने घर बार ॥ कामसेना नामे रे तेह कुमारनो रे, देखीने देदार ॥१॥ महा मोह पामी रे मनशुं मानिनी रे, हृदयमां उपन्यो राग ॥ सुधिबुधि नूली रे साहामुं जोतां थकां रे, लागी लगन अथाग ॥ महा ॥२॥ दरिसन थापी रे दिल लीधुं हरी रे,गणिका थगतनंग ॥ उप कोमी तेहनी रे रोमराय उखसी रे, अंगे प्रगट्यो अनंग ॥ म० ॥३॥ तव ते पूढे रे सखीने तारुणी रे,अहो अहो रूप उदार ॥कुमर केहनो रे अनिनव रूप शो रे, सहु पुरुषमा शिरदार ॥ म ॥४॥ सखी कहे इहां रे पुरमा शेठीयों रे, आपे अवारित दान ॥धवल घर उंचांरे फरहरे ध्वजा रे,तेहनो ए सुत रूपवान् ॥ म ॥५॥ जातां ने वलतां रे हवे तेजोषिता रे, विज्रम करे रे विलास॥मृगनी पेरे रे कुमरने पामवा रे, प्रीतनो मांड्यो रे पाश ॥म० ॥६॥ नादनो बांध्यो रे नित्य ते शेरीए रे, जोवा आवे ने जाय ॥ क्यारे कां आपे रे क्यारे बांहि धरे रे, अबला ते अकुलाय ॥ म० ॥ ७॥ केटलेक
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दाहाडे रे एम करतां थयो रे, मांहोमांहे मेलाप ॥ लालच लागी रे अने लजा टली रे, थिर कस्यो मननो थाप ॥ म॥ ७ ॥तुं मुज स्वामी रे आत्मनो राजीयो रे, तुं मुज धननो नाथ ॥ कामे ते वाही रे कामसेना कहे रे, एक दिन काली हाथ॥ म ॥ ए॥ ह न आपुं रे जीव जातां लगे रे, तुं मुज जीवन प्राण ॥ पुरुष हवे बीजा रे महारे बांधव पिता रे, स्वामी तुं शेठ सुजाण ॥म ॥ १० ॥ जेम तुंराखे रे तेम रहुँ साहेबा रे, लोपुंन ताहरी लीह ॥ वांक जो दे रे तो विरचुं नहीं रे, आण वढं निशदिह ॥म ॥११॥ जगमां जेतां रे पातक नीपजे रे, तो लागे तेतां मुज ॥ लाख गुनेहि रे सांजल लामला रे, त्रिविध तजुं जो तुझा ॥ म ॥ १२ ॥ तुंव्यवहारी रे वर खांते कस्यो रे, न धरं धननो रे मोह ॥ जे हुँ बोर्बु रे ते मानजे रे, सत्य त्यजीने अंदोह ॥ म० ॥ १३॥ जमणे हाथे रे वचन आपुं अर्बु रे, हुं तुज दिलनी दास ॥ वीशे वसा रे थर हुं आजथी रे, विलसो जोग विलास ॥म॥ १४ ॥ हुँ गणिकाने रे कुले उपनी रे, पण मेव्यो कुलाचार ॥ ताहरे काजे रे तेम तरसी रही रे, जेम चातक जल
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धार ॥ म॥१५॥ रढ श्म लागी रे मी रे, मोडं ते कुंअरनुं मन्न ॥ बीजी ढाले रे बड्यो ते सही रे, कहे कवि उदयरतन्न ॥ म ॥ १६ ॥
॥दोहा॥ ॥जिम सिंहण घेरे मृगने, तेम ते घेख्यो कुमार ॥ एक कर साही फालीनो, घाल्यो गलामा हार ॥१॥ करी केशरनां बांटणां, मस्तके घाख्यां फूल ॥ मग्न थयो महिला रसे, सुखनां देखी शूल ॥२॥ सांज पमी रवि आथम्यो, करतां बहुविध केल ॥ हवे हुँ जाऊं मंदिरे, कुमर कहे तेणी वेल ॥३॥ वेश्या कहे विलखी थर, रहोने वासो रात ॥ कुमर कहे हुँ केम रहं, वाट जवे माय तात ॥४॥ वाणे हं यावीश वही,कोल करीने तेह॥घरे पोतो तव घूमतो, घायल थश् गणनेह ॥५॥ माता थश् अलखामणी,तातनी न गमी वात॥मंदिर लागे मसाणशां, न गमे नगिनी जात ॥६॥ तव ते चित्तमां चिंतवे, वरजी घर व्यापार ॥ वसुंजश्वेश्याघरे, सफल करुं अवतार ॥७॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ श्मर आंबा आंबली रे,
झर दामिम जाख ॥ ए देशी ॥ ॥श्म ते मन मांहे धरी रे, लेइ एकावली हार ॥
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(3) शृगार पहेरी शोनतो रे, ग्रही वली गर्थ अपार॥१॥ वणिकसुत रह्यो रे वेश्याघर जाय ॥ ए आंकणी ॥ लोपी कुलनी लाजने रे,मेहेली माय ने बाप॥गणिकाने घरे ते गयो रे, विषयनो जोजो व्याप ॥ वणि ॥२॥ सर्प तजे जेम कांचली रे, तेम तजी सहुनो नेह ॥ वेश्या तेणे वाहली करी रे,अनंगनो महिमा एह ॥ वणि ॥३॥ नारी नयणे नोलव्या रे, ते नर जूला अह ॥ हरि हर ब्रह्मा सारिखा रे, हजीयन लाधा तेह ॥ व० ॥४॥ पहेला यौवन पूरमां रे, थिर न रह्या जे थोन॥ते नर पमीया बापमा रे, जेम घर नांगो मोल ॥व०॥५॥ हवे ते हरिणादीए रे, आलिंग्योधरी उर ॥ पीन पयोधर पहाममां रे, नूलो पड्यो ते नूर ॥ व०॥६॥ नित्य नवली क्रीमा करे रे, नित्य नवला संयोग ॥ सरस सुनोजन साहेबी रे, जोगवे सुरना जोग ॥ व०॥७॥ गणिका कनकनी मुघमीरे, कुमर ते निर्मल नंग॥ नख ने मांस तणी परे रे, बांधी प्रीत अजंग ॥ व०॥॥ प्राण तजे पाणी विना रे, जेम जल माहे मीन ॥ तेम ते वनिताने वशे रे, अहोनिश रहे आधीन ॥ व०॥ए ॥ साकर सम थर सुंदरी रे, वाला थयां विषरूप ॥ कयुं न माने
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केहन रे, जेम अन्यायी नूप ॥ व०॥ १० ॥ वेलो चड्यो जेम मांगवे रे, वली कस्यो विस्तार ॥ तेह पडे ताण्यो थको रे, नावे घर निर्धार ॥ व० ॥ ११॥ तेम गणिका तनु मांगवे रे,लोजी रह्यो लपटाय ॥ोमाव्यो बूटे नहीं रे, जो करे कोमी उपाय ॥व०॥ १२ ॥ उदय वदे अबला रसे रे,सबला जे महा शूर॥त्रीजी ढाले ते रहे रे, हरिणाची हजूर ॥ व ॥ १३ ॥
॥दोहा ॥ सोरठी चालमां ॥ ॥ सुबुद्धि सदाफल शेव, ठंडं मन आलोचीने ॥ नूप तिने धरी नेट,जश्मल्या हवे जनक ते॥१॥कहे नृपने कर जोगी, स्वामी सुणो एक विनति॥खंपण लागे खोम, कुलने सही कुबोरुए ॥२॥ प्रचुजी प्रतपो पाट, जग मांहे तुमे जालमी॥वस्ति पाडे वाट, वेश्या मुज वेरण थ६॥३॥ शूरो तुं शिरताज, अरियण मूल उबापणो ॥ करो अमारुं काज, देशवटो एहने दीयो॥॥डींकनोलेवा बेह,सूरज साहामुंजोरए॥जोरावर होये जेह, निर्बलथी नवि नीपजे ॥५॥
॥ ढाल चोथी ॥ जटीयाणीनी देशी॥ ॥ नूप जणे सुणो शेउ, करषण पियारो हो ढोर चरे जो आपणो ॥ तो झुं करे तिहां राय, मंदिर पर
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जाली हो जो करे हाथे तापणो ॥१॥मन मेले मरे जेह,खून करो कहो तेहनो हो केहनी पासे लीजीए॥ जाण्यो जे विष खाय,उलंनो अवनीमां हो केहने माथे दीजीए ॥२॥धेनु दोहीने फुध, मननी को मोजे हो पाये जो मंजारने॥तो केहने करीए राव, मावित्र बजारे हो वेचे ज्यारे दारने ॥३॥ नमर लीए जो जोग,वामी माहे फरतां हो विनोदे बहुविध फूलनो॥ तो केणे वो जाय, गणिकाशुंए दावो हो जोतां ले ए शूलनो॥४॥ गोल वोहोरानी वेठ, सहु करे मन होशे हो मुख मी करवा सही॥चावंतां कुलवट्ट,अमे पण विण गुन्हे हो केहने दमाये नहीं ॥५॥ उलंजानी पेर, जोतां शं नथी जमती हो तोपण चालो जोए ॥ वयण जो माने वेश, तो कुंअरने बोमावी हो कुःख तमारं खोए ॥६॥ एम कही अवनीश, परिकर लेश्ने हो पोहोतो गणिका बारणे ॥ नरी सोनैये थाल,सुंदरी ते सामी हो आवी मलवा कारणे ॥ ७॥ मुख बागल धरी नेट, मुजरो ते करीने हो कर जोमी बागल रही॥ थाल ते पाडो ठेल,वसुधापति आदेशे हो वजीरे वाणी कही ॥७॥ मनमान्या करो मित्र, मेहेर करीने हो मेहेलो वारो
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(१०) वेनो॥तम पासे सुणो आज,मागे जे महाराजा हो
आपो सुत था शेठनो॥ ए॥ कुबुद्धि ए कुविनीत, एह विना तमारे हो कहोने झुं अटकी रह्यं ॥ काढी मेहेलो वेग, मेनत करीने हो कहीए बै मानो कह्यु ॥१०॥ एहने काजे आप, महाराजा चालीने हो श्राव्या तुम मंदिरे॥ ते माटे तजी मोह, शेठने ए सुत आपो हो जेम अमे जश्ए घरे ॥ ११॥ खीजी गणिका ताम,तरतरी थश्ने हो बोली बोल एहवा सुण ॥ केहना कह्या माट, मनमान्या माणसने हो क्यारे को मूके गुणी ॥ १२॥रोष चढ्यो राजान, घणुं जो करे तो हो शूलीने अणीए धरे ॥ जीव जाये तो जाउँ, एक दिवस मरवू डे हो आखर सहुने शिरे ॥१३॥ शिर साटे ने प्रीत, प्रीतने कारण हो कहो तो प्राण आपुं वही॥ पण ए सुमतिविलास,पाणीवल पासेथी हो अलगो हुँ मेबुं नहीं ॥ १४ ॥ोड्यो बेल न जाय, कायानी जेम गया हो पिंजरने वली प्राणीयो ॥ उदय कहे चोथी ढाल, गणिकाए मन मांहे हो नृपनो जय नवि आणीयो ॥ १५ ॥ सर्व गाथा ॥ ७ ॥
॥दोहा ॥ सोरठी चालमां ॥ ॥ निश्चल जाणी नेह, अवनीपति तव उच्चरे ॥
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( ११ ) आपो ने एह, पांच दिवस परणावीए ॥ १ ॥ व्यवहारी वयह, महीपति वर माग्यो यदा ॥ नीर जरी नयणेह, गणिका कहे यर गलगली ॥ २ ॥ प्रभुजी महारा प्राण, ए वि न रहे अध घमी ॥ पण तुम वचन प्रमाण, करवा आप्यो कुमर ते ॥ ३ ॥ - वधि उपर एक दिन, जो जाशे तो जीव मुज ॥ जाशे विण जीवन्न, जनपति साधुं जाणजो ॥ ४ ॥ राजजुवन गयो राय, परघो लेइ पोता तणो ॥ गजशुं घर याय, शीघ्र सदाफल शेठ ते ॥ ५ ॥ जोर चलावी जान, सारंगपुरना शेठनी ॥ बेटी बहु गुणवान्, परपावी निज पुत्रने ॥ ६ ॥ आपी बोहोली याथ, कुमरने हाथ मूकामणी ॥ ससरे सघलो साथ, पहेराव्यो प्रेमे करी ॥ १ ॥ लीलावती वधू लेह, चाल्यो दवे चोथे दिने॥कोसंबी कुशलेह, जान खावी बहु जो पशुं ॥ ८ ॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ वाग्या जांगी ढोल ॥ ए देशी ॥ ॥ ढमक्या जंगी ढोल, हे सखि ! ढमक्या जंगी ढोल नादे अंबर गाजीयो ॥ पुरनी शणगारी पोल, हे सखि० ॥ रीजीयो पुर राजीयो ॥ १ ॥ नीसाएना निर्घोष, हे० ॥ जुंगल मेरी जगह || लाख गमे पुरलोक, दे० ॥ जोवा आदर घणे ॥ २ ॥
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(१५) गाये मंगल गीत, हे॥ कोकिल कंठी कामिनी ॥ राजकुमरनी रीत, हे० ॥ वरने वधावे नामिनी ॥३॥ वर वहूनी जोर जोम, हे॥ वखाणे सहु वली वली ॥ कुलवहूने मन कोम, हे० ॥ लूंबणां करे लली लली ॥४॥ याचक ये आशीष, हे० ॥ मनमा हरखे मावमी ॥ जनकनी पूगी जगीश, हे ॥खूण उतारे बेहनमी ॥५॥ गणिका चढी ते गोख,०॥ वधावे वालाने मोतीए॥ देखी कन्या निरदोष, हे०॥ रीसे विचारे पनोती ए॥ ६ ॥ बेठी मुजने अह, हे० ॥ जरतारने जो जनेरशे ॥ तो नावे मुज गेह, हे ॥ विरहवेरी मुज घेरशे ॥ ७॥ श्म चिंतीने शान, हे ॥ कुमर नणी कीधी इसी ॥ आवजो अवधि ा थान, हे०॥ संज्ञा ते केणे न लही किसी ॥७॥ वर कन्या. ते बेहु, हे ॥ पोखी पधराव्यां मंदिरे ॥ सऊन सहु ससनेह, हे ॥ पोहोता पोताने घरे॥॥पागंतरे॥वर कन्या सावधान,हे॥ पोहोतां घर बारणे ॥ गणिकाए करी शान, हे ॥ सगा नाति केणे नवि लही ॥ १० ॥ए कही पांचमी ढाल, हे ॥ उदयरतन श्म उच्चरी ॥ आगल वात रसाल, हे० ॥ सुणो श्रोता उलट धरी॥११॥
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(१३)
॥दोहा॥ ॥ लीला लीलावती तणी, रंगे जो एक रात ॥ वर जर वेश्याघर वस्यो, प्रगट थाते परजात॥१॥ जेहनुं मन जेहरांमत्यु, ते विण तिणे न रहाय ॥ जाख तणो तजी मांमवो, काग लिंबोली खाय ॥२॥ अजाण अधमने मान ये, उत्तमने अपमान हंस वरांसे हंसीने, बगलीने दे मान ॥३॥ हंसी बिचारी शुंकरे, बगली वाह्या हंस ॥ उत्तमनुं त्यां शुं गजु,अधम तणो जिहां अंश॥४॥सर्व गाथा ॥१२॥ ॥ ढाल बी ॥ नद। यमुनाके तार जडे-दोय
पंखीयां ॥ ए देशी॥ ॥तिम लीलावती नार, पीयु पुःख तन दहे ॥ जग लामीशुं जोर, न चाले चुप रहे ॥ जाण्यु तुं साकर युक्त , उध तलावमी ॥ त्यां न मले नीर लगार, अहो वेला पमी ॥१॥ आंबो जाण। एह, पुरुष में आदस्यो॥ कर्मे थयो करीर,वरांसी जे ए वस्यो ॥ माहरो पीयु परघर वास, के घर नावे घमी॥ जोडं महारा वालानी वाट, जंची मेमी चमी ॥२॥ दाहामामां दश वार हुं, खमकीए रहुं खमी ॥ नजर न देखुं नाथ, जाये ३ तन जमी ॥ जुवन मनो
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(१४) हर दिव्य, लागे मुने लाखसी ॥रोतां न खूटे रात, जाणे ए राखसी ॥३॥ श्म ते अबला बाल, फूरे मनशुं घणुं ॥ केहने कर्वा न जाय, ते कारण पुःख तणुं ॥ खामी विना समसाणशो, लागे सासरो । आतम रहे उदास, आपे कोण बासरो॥४॥ पीयरनी पलवाडे, जर रहेवु पडे ॥ पग मांडे तिहां बाल, सहेजे अवतां चडे ॥ निधणीयाती नार, घाले सहु नजरमां॥री न बेसे गम,दोरी जेम वज्रमां ॥५॥ पीयर पण अपमान, पामे ते सुंदरी॥ किहांये ते न समाय, नाथे जे परिहरी ॥ वसती उजम होय, के वाला विना सही ॥एम करी ते आलोच के, पीयर जर रही ॥६॥ मात आगल सवि वात, कही उतपातनी॥सुणी कालजानी कोर, दाजी तव मातनी ॥ घर वाला जे काज, कस्यां उजमनरे ॥तेह जमा जार, रह्यो वेश्याघरे ॥७॥ मात पिता मली ताम, विचार एवो करे ॥ तव कुंअरी ततकाल, नयण आंसु जरे ॥ शां में कीधां पाप, कहे एम कुंअरी॥ एकज तनया तात हुं, तम कुले अवतरी॥७॥फोमी सरोवर पाल, तोमी माल तरु तणी ॥ नांजी कस्यां व्रत नंग के, मारी में जूं घणी॥के में पीड्यां पर बाल,
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(१५) के परधन बहु हत्या के में संताप्या साधु, के अणगल जल नयां ॥ए॥ गुरुने दीधी गाल के, पूज्य पराजव्या ॥ नरड्यां धान सजीव के, माणस साटव्यां ॥ अकरा कर अन्याय, कस्या में पूरवे ॥ पामी ए जरतार, तेणे हुँ या नवे ॥१०॥ कुमरीना सुणी बोल के, मावित्रने हृदे ॥ बेद पडे लही नेद के, खेद धरी वदे ॥धोढुं तेटबुं बुध, दीतुं तेणे संग्रह्यं ॥ लंपट लक्षण हीण, कुलदणो नवि लयं ॥ ११॥ रहो पुत्री मनरंग के, पुत्र तणी परे॥ आपणे घेर सदैव, शुं करवु ने सासरे ॥ कुमरीनुं मन तन्न, दावानल परे दहे॥ विरह तणी विकराल, हिये करवत वहे ॥ १२ ॥ बाले वेषे बापने, रमती आंगणे॥ यौवन लही जंजाल, पमी कुंथरी नणे ॥ वियोग में वेठ्यो न जाय, एणे उःखे वन वसुं ॥ सापण थक्ष ततकाल के, गणिकाने मसुं॥१३॥ लीलावती लख जाती, विलाप करे इस्या ॥ गिरि थाये शत खंम, निसासा मेले तिस्या॥ उदय कहे बही ढाल, विधाता जो मले॥तोपण लखीया लेख,बहीना नवि टवे॥१४॥
॥ दोहा ॥ ॥ पहेले आणे प्रेमशु,शेठ सदाफल सोय ॥ आव्यो
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(१६) वहूने तेमवा, आदर नापे कोय ॥१॥ कहो शेवजी किहां वसो, किस्युं यहां के काम ॥ के जूला आव्या अबो, एम सहु पूडे ताम ॥२॥ वसीए कोसंबीपुरी, सदाफल महारं नाम ॥ आणे शहां आव्यो अर्बु, लीलावतीशुं काम ॥३॥किहां गाज्यो किहां गमगड्यो, किहां जश् वूगे मेह॥ किहां जग्यो किहां आथम्यो, लहो पटंतर एह ॥४॥ आव्या तेम जाउँ फरी, तमे तमारे गेह ॥ मारगमां बेठी नथी, बेटी अमारी एह ॥५॥ वेगे पाडो वालीयो, आणुं धरी अप्रीत ॥ सदाफल शेठ कोसंबीए, आव्यो लही अनीत ॥ ६॥ ॥ ढाल सातमी ॥ सहीयां मार। नयण
___ समारो ॥ ए देशी॥ ॥बीजे आणे हवे वहूने हे, वहेल जोमी वर्षांतरे जी ॥ कुलवहने तेमवा काजे, ससरो पोहोतो सारंगपुरे जी ॥१॥ लीलावती तव लाज करीने, मुख आगल जव उतरे जी॥ तव ससरो कहे वहजी तमे एक, वात सुणो वारु परे जी ॥२॥णतां जणतां ग्रंथ नणाये, रलतां रलतां शकि संपजे जी॥ शनैः शनैः पंथे चलाये, इंटे इंटे गढ नीपजे जी ॥३॥
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(१७) सेवा करतां मन वश थाये, मगे मगे चढीए डुंगरे जी॥ लखतां लखतां लहीयो होवे, उद्यमे दारिद्यने हरे जी ॥४॥ ससरानी ए शीख सुणीने, वात एवी तेणे मन धरी जी ॥ दिवस फूरंतां पीयरे जाये, वैर वालु उद्यम करी जी ॥५॥ श्म चिंतीने उठी दादाने, वात कहे लीलावती जी ॥ वेश्याशुं जश वेर वसायु, सासरवासो करूं ते वती जी ॥६॥ दादा दखणी चीर मगावो,पांच पटानो घाघरोजी॥ कांचली मांहे नंग जमावो, मांडं वेश्याशुं मजागरो जी ॥७॥ नाक प्रमाण नथमी घमावो,पाय प्रमाणे मोजमी जी॥ हैया सोहंतो हार मगावो, काने त्रोटी हीरे जमी जी ॥ ॥ मांगवगढनी मेंदी मगावो, चंदेरीनी चूंदमीजी॥तेटलीदादाजी त्रेवममा रहेजो, घुघरीवाली घाटमी जी ॥ ए॥ सासरवासणने काजे जे जे, जोशए ते संजारीने जी॥ गवारा मांहे जरों गेले, विगतेशु विचारीने जी ॥१०॥वारु पांचे वस्त्र पहेरावो, ससराने रलियामणां जी॥ पाट 'पर्नेमी पटोनुं जोइए, सासरीयाने सोहामणां जी ॥ ११॥ सातमी ढाले सासरवासो, कीधो उदयर
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(१७) तन कहे जी ॥ सासरीए जे बेटी बोलावे, त्रेवा संघली ते लहे जी ॥ १५॥ सर्व गाथा ॥ १३४ ॥
॥दोहा॥ ॥ पवनवेग धोरी चले, कोटे घूघरमाल॥ सोवन खोली शिंगडे, अति सुंदर सुकमाल ॥१॥ जोपे वहेलज जोतरी, सांगी बनी पट सूत्र ॥ गामी बेगे गुमानगुं, दीसंतो अद्लुत ॥२॥ नयणे आंसु नीतरे, सहुशुं मागी शीख ॥ वहेले सासरवासणी, सलजी बेठी वीक ॥३॥ खेकी बहेव ते खांतशें, कहुं हवे शुकन विचार ॥ लीलावतीने जे थयां, ते सुणजो नर नार ॥ ४॥ सर्व गाथा ॥ १३ ॥ ॥ ढाल आठमी ॥ शहेर नढुं पण सांकडं
रे लाल ॥ए देशी॥ ॥ मालण पहेली सामी मली हो लाल, फल फूले नरी बाब॥ सुखकारी रे ॥ वदे शुकन लीलावती हो लाल, लही मनवंबित लान ॥सु ॥१॥ शुकन तणी वात सांजलो हो लाल, शुकने सीजे काज। सु ॥ शुकन साचां संसारमा हो लाल, शुकने सहीए राज ॥ सु०॥शुकन॥२॥सुत तेमी सामी मली हो लाल, सधवा नारी सुचंग ॥ सु०॥ श्रीफल
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(१५) यापे कुमारिका हो लाल, तिलक करी मनरंग ॥सु०॥ शुकन० ॥ ३ ॥ मत्सयुगम दधि मृत्तिका हो लाल, पाणी मरे पाणीदार ॥ सु० ॥ धेनु सवछा धारणी हो लाल, सामां मल्यां ए सार ॥ सु० ॥ शुकन ॥४॥ खर श्वान मुर्गा कागमो हो लाल,सारस शांढ शीयाल ॥ सु॥ माबां ए फुःखने हरे हो लाल, आपे मंगलमाल ॥ सु० ॥ शुकन० ॥५॥ कुंज करेवा चीबरी हो लाल, हनुमंत ने हरणाय ॥ सु०॥ जमणां ए जयने करे हो लाल,आपद् उकरपाय ॥ सु॥ शुकना ॥६॥ अहि पण जमणो उतस्यो हो लाल, नकुल समो नीलचास ॥ सु ॥ तोरण बांधे सीममां दो लाल, गणेश जमणो आस ॥ सु॥ शुकन ॥७॥ जंगलवासी ए जीवमा हो लाल, वहू पूडे उमेद ॥ सु॥ नाजा सावज ए शुं कहे हो लाल, नाखे केहो नेद ॥ सु ॥शुकन० ॥ ॥ए शुकने उजम वसे हो लाल,वांऊणी जणे पुत्र ॥ सु०॥ विद्या मूर्खने आवड़े हो लाल, रांक लहे राजसूत्र ॥ सु०॥ शुकन ॥ ए॥ ससरो कहे वहू सांजलो हो लाख, मलशे तुम जरतार ॥ सु॥दावो नांगेगणिका तणो हो लाल, करशे तुम किरतार ॥ सु०॥ शुकना
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(२०) ॥१०॥ अनुक्रमे ते आव्या वही हो लाल, निज गेहे जण दोय ॥ सु०॥ उदय ए आठमी ढालमा हो लाल, शुकन ते पुण्ये होय ॥ सु॥ शुकन॥११॥
॥दोहा॥ ॥ ससरा सासु सांजलो, कहे महियारी वेश ॥ करी वालो हुँ वश करूं, बुद्धिबले सुविशेष ॥१॥ जो आवासे जोपरां, वासो मुजने वेग ॥ महिषी चारे मूलवो, जिम टायूँ उठेग ॥२॥ उरे थोमी पेटे घणी, लांबा अंचल जास ॥ वीज चरी अति चीगटी, जोटी मगावो खास ॥३॥बे सेंढी बेसामली, कोणी त्वचाए जोट ॥ पग डोटा लघु शिंगडे, महि माखणनो कोट ॥४॥महियारीने मिषे करी, पीयु माहारो परजात ॥ जो जश् गणिकाघरे, वहूनी सुणी ए वात ॥५॥ ससरे सघलो साज ते, मेली बाप्यो तंत ॥ नणंदने साथे तेडीने, गोरमी ते गुणवंत ॥ ६॥ गणिकाने मंदिर गश, प्रह उगमते सूर ॥ देखाड्यो तसु रथी, नणदीए नाथ सनूर ॥ ७॥ दातण करतो देखीयो, जिस्यो पंचायण सिंह ॥ सोल कला शशिहर समो, दिल चिंते धन्य दिह ॥ ॥ परनव पुण्य जेणे कस्वां, पूज्या जेणे
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(२१) जगवंत ॥ नणंद कहे जानी सुणो, ए सही तेहनो कंत ॥ ए ॥ सर्व गाथा ॥ १५ ॥
॥ ढाल नवमी॥ हमीरीयानी देशी ॥ ॥ नणंद नोजाइ ते बेहु जणां, फरी श्राव्यां निज गेह सलूणी ॥ महियारी थर मोदशं, हवे लीलावती तेह सलूणी ॥१॥ अजब बनी आहीरमी, मलपती मोहनवेल स०॥ रूपे रंन हरावती, गजगति चाले गेल स०॥ अजब॥२॥ धोली धावली पहिरणे, विच विच राता तार स० ॥ कोरे काला कांगरा, गले गुंजानो हार स॥अज॥३॥ उढण आबी लोबमी, ते आगल श्यां चीर स० ॥ पोसाये पट अंतरे, दीसे दिव्य शरीर स० ॥ अ॥ ४ ॥ नरत नरी सोहे कांचली, कसणे कस्या कुच दोय स० ॥ जाणे यंत्रनां तूंबमां, सरसतीए धस्यां सोय सम् ॥ अ॥५॥ वेणी वासग नागशी, गज गज लांबा केश स० ॥ घूघरीवालो गोफणो, उपे अद्जुत वेश स० ॥ अ॥६॥ कशे कसबी फूमका, खटके लोबमी मांहे स॥ पातल पेटी ने फूटरी, यौवन लहेरे जाय स० ॥ अ०॥७॥ दंत ऊबूके दामिनी, मुखनो मटको जोर स० ॥ नथ नाके थरकी
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(२५) रही, जाणे कलाश्यो मोर स० ॥ अ॥७॥ चंडमुखी मृगलोचनी, सिंहलंकी सुकुमाल सम्॥ पाय प्रमाणे मोजमी, कोकिलकंठ रसाल सण ॥ अफ ॥ए ॥ कोमल कमलशी बांहमी, चतुरा चंपक वान स०॥ चूडे चटक लागी रही,त्रोटी ललके कान स॥ अ॥ १०॥ माथे मटुकी काचनी, उढाणी अनूप स० ॥ लांबी बाद लोमावती, चाली ते धरी चूंप स० ॥ अ॥ ११॥ महियारी महि वेचवा, शेरीए पाडे साद स० ॥ वेरण पहेला नव तणी, तेहथु करवा वाद स० ॥ अ० ॥ १२ ॥ लाज तजीने लीलावती, सजी सोले शणगार स० ॥ नवमी ढाले नीसरी, उदय कहे नगर मकार स० ॥ अ० ॥ १३ ॥
॥दोहा॥ ॥गश्ते गणिका शेरीए, दिवस चढ्यो घमी चार ॥ बेगे दीगे बारणे, तव तिहां निज जरतार॥१॥ सुमति विलास तव तेहने, देखी रूप अमूल ॥ मूडे वल देतो थको, महिनुं पूजे मूल ॥२॥ ॥ ढाल दशमी ॥ हुँ वारी रंग ढोलणा ॥ ए देशी॥
॥ महियारी मुख देखीने हो राज, मनशुं पामी मोह अपार रे ॥ हसीने रह्यां लोयणां ॥ हाथा
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(३) कारी जले नरी हो राज, बेठो दातण करे कुमार रे ॥ हसी० ॥१॥ वांकी मेली पाघमी हो राज, वली बूटी मेली चाल रे॥ हसी० ॥ उरमा सोहे उतरी हो राज, रुमो जाणे राज मराल रे॥ ह॥२॥ सुर हो जाणे केवमो हो राज, सरलो जाणे चंपक बोम रे॥०॥ केसरीयो कोमामणो हो राज, मूडे उपे मुखनो मोम रे॥ हा ॥३॥ लोचन अमीय कचोलमां हो राज, मध्ये राती जीणी रेख रे॥६॥ अणीयाला काने अड्यां हो राज, काने मोती नजे सुविशेष रे ॥ ४० ॥ ४॥ रंगनीनो रलियामणो हो राज, उपे बेठो उंचे गमरे ॥६॥ कस्तुरीया मृगनी परे हो राज, महके मनमथशो अभिराम रे॥हा॥ ५॥ महियारी मन चिंतवे हो राज, धरणीतलमा गणिका धन्य रे ॥ हा ॥ में सही तप उडां तप्यां हो राज, पूरां कीधां एणे पुण्य रे ॥१०॥६॥एम मन मांहे बालोचती हो राज,रही मुखमा सामुंजोय रे॥ ह ॥ दशमी ढाले उदय वदे हो राज, फरी तिहां बोल्यो सोय रे॥हा॥७॥ सर्व गाथा॥१०॥
॥दोहा॥ ॥ महियारी मनमा किस्यो, वली वल्ली करो वि.
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(२४) चार॥लाज मूकहोने मुख थकी,एकज थाणे गर॥१॥ ॥ ढाल अगीयारमी ॥ कलालणी, तें महारो
पीयु नोलव्यो हो लाल ॥ ए देशी ॥ ॥ साहेबजी ॥ सांजलो शेठजी विनति हो लाल, तुमे गे चतुरसुजाण ॥साहेबजी।मूल किस्युं तुम थागले हो लाल, अमे करीए अजाण ॥१॥ सा ॥ मुह मचकोमा महियारमी हो लाल, बोले मीग बोल ॥सा ॥ अलवे आंखो उलालती हो लाल, बूंघटनो पट खोल ॥२॥ सा०॥तुमे उत्तम व्यवहारीया हो लाल, समजो सघली पेर ॥ सा॥ दाने पुण्ये आगला हो लाल, जाणे दरियानी लहेर ॥३॥ सा ॥ अधम जाति बाहेरनी हो लाल, न लडं नव ने तेर ॥ सा॥अमने कांश नावडे हो लाल, शेर घणुं के पाशेर ॥४॥ महियारमी ॥ बाघो ताणी बूंघटो हो लाल, पानी राखे बाद ॥ महियारमी ॥ वात करे विनोदमां हो लाल, नाजुक नाखे बाह ॥ ५॥म ॥ नानी देखाडे नयणे हसे हो लाल, आलसे मरडे अंग ॥म०॥ उरनो बेहेमो खोसे फरी हो लाल, मसे अधर सुरंग ॥६॥म ॥ कुच देखाडे कंडू मिषे हो लाल, मरकलडे करे हास ॥ म ॥
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(२५) अग्यारमी ढाले उदय वदे हो लाल, विधविध करती विलास ॥म॥मुह मचकोमी महियारमी हो लाल॥
॥ दोहा॥ ॥ दीठी महियारी दीपती, निरुपम रूप निवास ॥ मन चलीयुं महेता तणुं, तव फेमस तास ।।१। कहो महियारी किहां वसो, कन्हे भुताहा नाम कोण कुले तुं उपनी, कहे कोणताहाखाम
॥ ढाल बारमी ॥ हवे न जाउ माहेर
__ वेचवा रे लो॥ ए देशी ॥ ॥नाम सलूणी माहरूं रे लो, जातनी बु नरवाम॥ महारा वालाजी हो, हुँ रे श्रावी बु महि वेचवा रे लो ॥ राजपुरे वासो वसुंरे लो, हेजाली बुं हाम॥ म॥ हुँ रे ॥ १॥ खामी डे शिर माहरे रे लो, हणु नामे हुसनाग ॥ म ॥ महिषी जे माहारे मंदिरे रे लो, दहीं फुधनो ने लाग ।। म ॥ हुं० ॥२॥ पूडो बोशे कारणे रेलो, शंकर ने विवशाल॥म॥ उली जात आहेरनी रे लो, लोक चमावशे आल ॥ म ॥ हुं ॥३॥ खांते खोटी कां करो रे लो, माहार बे घरनु काम ॥ म० ॥ वाट जोता हशे वाबरु
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(२६) रे लो, रीस करशे वली वाम ॥ म ॥ ढुं० ॥४॥ हामा लोहणुं अबे रे लो, उजम मांहेलो नूत ॥म०॥ तुं नखराली गोरमी रे लो, केम चाले ने घरसूत ॥ म ॥ हुं० ॥५॥पग आगल नथी पेखता रे लो, करो बो पीयारी तांत ॥ म ॥ स्त्री जामी ने तुमे पातला रे लो, दीसे वे नांत कुनांत ॥म॥हुं०॥६॥ जामी ते नारी जोतां थकां रे लो, बे मंदिर- रूप ॥म०॥मुबली दीसे दयामणी रे लो, तेहने न माने नूप ॥ म० ॥ हुं ॥ ७॥ सलूणी कहे सुणो शेवजी रे लो, फोकट शी करो फूल ॥ म ॥ ग्रंथे वखाणी ले गोरमी रे लो, पातली हबुर फूल ॥ म० ॥ हुं० ॥७॥ बारमी ढाले एम बोलतां रे लो, वचननी करतां टोल ॥ म० ॥ उदयरतन कहे शेग्नी रे लो, दाढे लाग्यो बे गोल ॥ म ॥ हुं० ॥ ए॥
॥ दोहा॥ . ॥मदेतो मनशुंरीजीने, दहींना पूछे दाम ॥ केता
आपुं कहो खलं, लाजे विणसे काम ॥ १॥ सलूणी तव शिर नामीने, बोली टाढा बोल ॥ शेवजी हीणा दीसीए, महिy करतां मूल ॥२॥
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(७) ॥ डाल तेरमी ॥ गोकुल गामने गोंदरे रे, श्रा
शी खूटाखूट ॥ मारा ॥ ए देशी ॥ ॥आंखमी राखोने धारणे रे, देखशे उर्जन लोक माहारा वाहाला रे ॥ माणसमां नथी बूटको रे, फजेत थातुं फोक ॥ मा॥ आंखमी० ॥१॥ अमे
जाति बाहेरमी रे, मुह माग्युं लहीए मोल ॥ मा ॥ के आपुं विण दोकडे रे, तेहवो देखें जो तोल ॥ मा० ॥ ॥२॥ गोरसनुं कहो \ गजुं रे, नाव धरो तो करूं नेट॥मा॥ हुँतुमथी अलगी नथी रे, जेमतेम आपq नेट॥मा॥ ॥३॥वाते वमान नीपजे रे, सांजलो शेठ सुजाण ॥ मा ॥ मटकी एम मोहोरे दीजं रे, घणी शो ताणोताण ॥ मा॥ आंग॥४॥ मुज सरखी जेने सुंदरी रे, तम सरिखो जेने नाथ ॥ मा० ॥ गोरस जमशे ते सही रे, मेहलो मरमाशे हाथ ॥ मा० ॥ आंग ॥५॥ वलती वेश्या खीजी कहे रे, जा रे जा जरवाम॥जगधूतारी रे ॥ गोरस न होये केहने रे, तो सही लीजे ए पाम ॥ ज० ॥ आंग ॥ ६॥ सलूणी एम सांजली रे, तरतरी थर कहे ताम ॥ जगनी लामी रे ॥ सुण गणिका में तुजने कली रे,रेख न राखुं हवे माम
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(२) ॥ जग० ॥ ॥ ७॥ पुरुष पीयारा नित्य नोगवो रे, ठूटो लाखीणी खूट ॥ जग ॥ धरती धूती खा तमे रे, पण आखर नथी. बूट ॥ जग ॥
॥७॥ खोटी बदाम खरचो नहीं रे, जीव जाये जेणे ठाम ॥ जग ॥ तो केम खरचे दिनार तुं रे, दोहणी दहीने काम॥ जग ॥ ॥ ए॥ एक वले ने बीजो मेलवे रे, वली जुवे त्रीजानी वाट ॥ जग॥नित्य नवला नर वीने रे,खंदे दारीनो खाट ॥ जग ॥ आं० ॥ १० ॥ नर ते निश्चय आंधला रे, जे रहे तमारे आधीन ॥ जग ॥ नरके जाशे ते बापमा रे,फुःख देखशे थश्दीन ॥ जग॥०॥१९॥ पण शुलेश्जावू अडे रे,आखर धूले धूल ॥सुणोश्रोता रे॥जली लुमी रहे वारता रे, जीवडो जाये जेम तूल ॥ सुणो ॥ आंग ॥ १२॥ अवसरे आव्यो मले नहीं रे, कोश्ने लागतुं वयण ॥ सुणो ॥ तेरमी ढाले तक जोश्ने रे,उदय कहे सुणो सयण ॥सुणोण ॥ आं० ॥ १३ ॥ सर्व गाथा ॥ १४ ॥
॥ दोहा॥ ॥ कामसेना कहे कंतने, कोश्क ए कुल शुरु ॥ कामिनी डे एहने कुले, केणे न वेच्युं उध ॥१॥
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(ए) धूतारी श्हां धूतवा, आवी जे निरधार ॥ एम कहीने गणिका गमंदिरमा तेणी वार॥॥सर्वगाथा॥१६॥ ॥ ढाल चौदमी ॥ रामचंदके बाग, चांपो
मोरी रह्योरी ॥ ए देशी ॥ ॥ तव कहे शेठ सधीर, सांजल नारि सलूणी ॥ एणे मूखे लही चीर, दहीं तणी ए दोहणी ॥१॥ तो पामे मूल एह, जो तुंरहे वासो॥तजी हणुानो नेह, जोने महारो तमासो ॥२॥ घांचण उकी लोहार, मालण ने जरवामी॥मोचण नटवी सोनार, एहने कहो शी आमी॥३॥ अवश्य महियारीज, ए परगमे जो तमने॥तो महेली मन लाज, एकांते आदरो अमने॥४॥ दशको जो आपो दिनार, मनमोजे महेताजी ॥ तो वासानो विचार, करवा थक्ष ढुं राजी ॥५॥जले सरजी नरवाम, शेठ कहे सोजागी॥महेलो मननी गांठ,हवेलजा नांगी॥६॥ वियोग न वेठ्यो जाय, आज वसो मुज उरे॥मंदिरे ते न जवाय, राखीश हुं शहां जोरे॥७॥ठानी नली संसार, चोरी यारी ने चामी ॥ रखे लहे मुज नरतार, रखे लहे तुज घर लामी ॥७॥ करी कोलकरार, मांहोमांहे तेणी वेले ॥ महिने मिषे निरधार,
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(३०)
रोज मले मनमेले ॥ए ॥ नानी आपे मोहोर,प्रगट दीए पीरोजी ॥ हैये राखी होर,महेतोजी मनमोजी ॥१०॥ ए कही चौदमी ढाल, उदयरतन उद्बासे॥ सुणी त्रिय वयण रसाल,धन्य जे न पड़े पासे ॥१९॥
॥दोहा सोरठी रागमां ॥ । ॥ वयण नयण विलास, सुरनी परे करतां सही। बार वरष षट् मास, वोली गयां आशा वशे ॥१॥ बाथनो आव्यो बेह, वेश्या कहे तव वबहा ॥ श्रापणी वेरण एह, लखमी सर्व बीधी हरी ॥॥ वारु मोहनवेल, ए पासे दीसे अ॥ रुमी रूपारेल, दहीं साटे करी ए वयण ॥३॥
॥ ढाल पन्नरमी ॥ सोरठी चाले ॥ ॥एम वात करे ने जेहवे,सबूषी आची तिहां तेहवे ॥ शिरदेश महिनीमटकी,त्यारे कामसेना कहे त्रटकी ॥१॥महिनीमाती महियारी,हुं तोतुजागले हारी॥ बांयमो जोती गर्व गहेली, वारतां आबे केम वहेली पशादही सादे तेंघर माहारुं, टीजरीयुं घर ताहारुं॥ ताहारी आंखमी कामणगारी,तुं तोदीसे डेवमीधूतारी॥३॥ आज महेतोजी उधारे, मटकी मागे तुज द्वारे॥ देशू दिन चोथे दाम, मनर्वा राखजे तुं गम
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(३१) ॥४॥ तुज दहीं विना सुण माय, महेतोजी धान न खाय॥ते माटे बोल्युं पलजो,मन माहे मत खलनलजो ॥५॥ बोल्युं जो पालो तुमे साचुं, उधारे तो हुँ राचुं ॥ महेते तव वाचा दीधी, गणिका पण बोली सीधी॥६॥ सलूणी कहे शिर नामी,साचुं कहुं सुणजो खामी ॥ उधारानुं हुं लेखं, इणे मिषे मंदिर देखें ॥७॥ पाबी वली पूजे विचार, कहे तोमटकी लावू चार ॥ त्यारे वेश्या कहे सुणो बाइ, ताहरे तो खोट न कां॥॥मोहोर बे देतां निरधारी, अमने लागे जारी ॥ जेम तेम करी एक जो थाय, तो माणसमां रदेवाय ॥ ए॥ मीयांनी बले मूब दाढी, दास दीवो करे दंत काढी ॥ ए श्हां मले जे उखाणो, महेतो दही सारे देवाणो ॥ १०॥ त्यारे महतो इसीने बोले, कोये नावे दहीने तोले ॥दहीं मुधे एहने नविधाए, घर वेचीने पण खाए ॥ ११ ॥ शुं कीजे साकर डाख,अमृत ने यांबा साख ॥ए वादनी पेरजे जाणे, ते तो नित्य दीवाली माणे ॥ १२ ॥ एवी महेसानी मुणी वाणी, गणिका ते रोष जराणी ॥ कहे कोप चढ़ी धरी बाहे, झुं देखो को घर मांहे ॥१३॥ उधारे जे खाय, सरवाले तेह सीदाय ॥ महियारी
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( ३२ )
माथे जे गाजे, ते तो काम घर वात न बाजे ॥ १४ ॥ जेम जेम गणिका बहु खीजे, महियारी तेम तेम रीजे ॥ जेहनुं न दुःखे पेट ने पासुं, तेहने खमखम यावे हासुं ॥ १५ ॥ दहीं दुधनी मोहोरुं वडे, पररा मि जोतां लोही चडे ॥ वैरी ज्यारे आवे वाज, त्यारे दिलनी जांजे दाज ॥ १६ ॥ गणिका कहें काली हाथ, शेवजी महियारी साथ ॥ दहीं दुध खावाने जार्ज, हवे
म घरमा न समावो ॥ १७ ॥ वाहालुं ने वैद्ये कयुं, बेनुं मन मान्युं तेम युं ॥ महियारी महेताने लेइ, तिहांथी चाली ससनेही ॥ १८ ॥ घाघरा उपर सोहे घाट, परण्यो लेइ चाली वाट || मोदनशुं कहे गुह्य मलीयां, महेता पूरुं मन रलीयां ॥ १७ ॥ ढाल पन्नरमी ए बोली, सोरठी रागे मन खोली ॥ उदयरत्न कहे जो कहेशो, तो सजा मांहे जरा लेशो ॥ २० ॥ ॥ दाहा ॥
॥ सजन थयो संयोग, वियोग रह्यो हवे वेगलों ॥ जोगवो नवला जोग, सलूणी कहे हवे साहेबा ॥ १ ॥ साहारा यौवन वेश, हुं मदवंती मानिनी ॥ जे केशो ते करेश, रति एक अरति राखो रखे ॥ २ ॥ शेठ कहे सुप नारि, हैये तिशुं होते कहुं ॥
धम
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( ३३ ) ताहारो अवतार, उत्तम कुल हुं उपन्यो ॥ ३ ॥ जो जाणे जग कोय, मुज रहेतां तुम मंदिरे ॥ श्जत बी होय, कीर्ति जाये कुल ती ॥ ४ ॥ हुं राखुं एणी रीत, जेम कोइ जाणे नहीं ॥ परिघल दाखं प्रीत, खोटो म करो खरखरो ॥ ५ ॥ प्यारी जीवन प्राण, तम में आप्यो तुने ॥ वली श्यां करुं वखाण, तुं गोकुलनी गोरमी ॥ ६ ॥ सर्व गाथा ॥ २५६ ॥ ॥ ढाल सोलमी ॥ माहारे खांगणे हो, जीणा मारु वावमी ॥ ए देशी ॥
॥ माहारी पूठे हो, पगले पगले पाधरा, यावोने चाहे ॥ मनमोहना ॥ हसी बोलो हो राज, जमर मोशुं रंग करो ॥ थें तो रंग करो लाजो हो कां ॥ मनमोहना ॥ इसी० ॥ १ ॥ चागलची हो, ते अबला चाले उंचे मुखे, ते तो नीची नजरे शेठ ॥ मन० ॥ पूठेथी हो, बीही तो बीहीतो पगलां जरे, कोइ सामी न मांडे दृष्ट ॥ मन० ॥ हसी० ॥ २ ॥ जले शुकने हो, चतुरा चाले चमकती, महेताने कहे मुज खाम ॥ मन० ॥ नूतनी परे हो, वनखंग मांहे ते जमे, षट् मास लगे नावे धाम ॥ मन० ॥ इसी० ॥ ३ ॥ जिहां राखुं हो, तिहां तमे रहेजो रंगशुं, सेवा करीश
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ली० ३
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(३४) सावधान ॥ मन ॥ लखमीचं हो, महारे घेर लेखु नहीं, दहीं सुधे वालीश वान ॥ मन॥हसी०॥॥ अपूरव हो, कला एवी कोश केलवी, स्वामीशुं श्रावी घेर ॥ मन॥शेरीमांहे हो, पामोशीए पण ते किसी, कोणे न जाणी पेर ॥ मन ॥ हसी० ॥ ५॥पूरवनां हो, पुण्य प्रगट थयां,सवि जुधे वूग मेह ॥मना घणो नावे हो, खामी घेर आव्यो वही, नवला बांध्या नेह ॥ मन ॥ हसी० ॥ ६॥ आ जूनो हो, दिवस लागे रलियामणो, एम बोले अबला बाल ॥ मन० ॥ उलटशुं हो, उदयरतन कहे अहो, नवि ए कही सोलमी ढाल ॥ मन ॥ हसी बोलो. हो राज, जमर मोशुं रंग करो ॥ थे तो रंग करो लाजो जो कां ॥ म ॥ हसी० ॥ ७॥
___॥ दोहा सोरठी ॥ ॥ खामी पधारो सेज, कमाम जमी कहे कामिनी ॥ हैयडे आणी हेज, क्रीमा मनगमती करो ॥१॥ घण नेही प्रिया घेर, अरज करे आगल रही ॥कंत राता कंथेर, केलि मूकी शे कारणे॥२॥मुजशुं मांमो मोह, स्वर्ग तणां सुखजोगवो ॥ अरति तजी अंदोह, प्रजुजी श्हां प्रबन्न रहो ॥३॥ चिंता न करो चित्त,
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(३५) मंदिर हणुउँ नवि मले ॥ दारिद्य पूर वसंत, वेरण शहांनावे वली ॥४॥कूडो कलह न मांग, आहिरणी आंखो रोषणी ॥ बबिली केमो गंम, वेश्या ते वाही खरी ॥५॥ बागलथी हरी आथ, गणिका तें गहीली करी ॥ ढुं पण कीधो हाथ, हवे एहशुं कहो हठ किस्यो ॥ ६॥ आज मोतीडे मेह, वूग मुज आंगण वली ॥ आज मुज हर्ष अबेह, आज रवि कंचन उगीयो ॥ ७॥ आज नवला नेह, आज सुरंग वधामणां ॥ नावठ नांगी जेह, आशा आज सफल फली ॥७॥ सर्व गाथा ॥ २१॥ ॥ढाल सत्तरमी॥पहेलो ने पासो हो जी॥ए देशी ॥
॥ पूडे सलूणी हो जी, तमे परण्या अबो जी,के बगे कुंयारा स्वामी साचुं कहो जी॥माय ने बाप हो जी, कहोने किहां वसे जी, खबर तेहनी क्यारे किसी लहो जी ॥१॥मावित्र माहारां हो जी, पवित्र पुण्यात्मा, एहीज पुरमा हो जी, वासो वसे अ जी ॥ पीयरे मेली हो जी, प्रेमदा परणीने, तेहनी मुजने रे शुद्धि किसी न जी॥॥तुज सम उंची होजी, तुज सम शोजती, ताहारा जेवो रे वान ने देहनो जी॥ मुखनी बत्रीशी हो जी, लटकुं हाथ, ताहारा
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जेहवू रूप ले तेहy जी ॥३॥ सुणो महेताजी हो जी, तुम नारी तणी, शुक हुँ ना रे नामे लीलावती जी॥ सारंगपुरना हो जी, शेउनी सुता, रूपे करीने रंन हरावती जी ॥४॥ चीर पटोलां होजी, पहेरे सदा, चतुराएहनी रे तमने किसी कडं जी ॥ ज्ध बापुं बुं हो जी, नित जश् हुँ तिहां, वात ए सघली तेणे करी हुँ लहुं जी॥५॥ते पण इहां होजी, कहो तो तेमावीए, जोमी तमारी रे ने सही सारखी जी ॥ परणी कन्या होजी,शे कारण तजी, खोम तेहमां शी तमे पारखी जी ॥६॥ महेतो मुखथी हो जी, एम सुणी बोलीयो, तेहने शे कामे
हां तेमीए जी॥ तिहां ने सुखणी हो जी,दाहाडोले पाधरो, सुता सिंहने कहो केम डेमीए जी ॥७॥ मनडु माहारं हो जी, मलीयुं तुजगुं, नजर न आवे बीजी कोश्सुंदरीजी॥सत्तरमी ढाले हो जी, उदयरतन कहे, युवतीए जोजो बुद्धि केहवी करीजी॥७॥
॥दोहा सोरठी ॥ ॥ सहु कहे पुरुष सुजाण, मूरख जाति महिला तणी॥ पण सघलां सहीनाण, पूरूं ते प्रजुजी सुणो॥१॥
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(३) ॥ ढाल अढारमी ॥ हाररो हीरो माहारो, नणदीरो वीरो माहारो साहेबो ॥ ए देशी ॥ ॥ चोरीए चढीने तमे मुजने, प्रजु महारा आप्यो जमणो हाथ हो ॥ कर चांपी उना थया, प्रजु महारा महोले चढ्या बे साथ हो ॥१॥ जीवना जीवन माहारा, देहना दीपन माहारा, मनना मोहन माहारासाहेबा,प्रनुमाहारा वली एक वातसुणावं हो ॥ए आंकणी॥माहारीजानी दीवो महेलीगइ.प्रज माहारा हुं लाजी एक. पास हो ॥ अलगी जश् उनी रही, प्रनु माहारा तमे जोयो आवास हो ॥जी ॥ दे ॥ मन ॥ मा॥०॥वली॥२॥हिंमोलाखाटे त्रण कमां, प्रजु महारा चोथे पाश्ये दोर हो ॥ बांधी बेगं बे जणां, प्र०॥तमे थया चीरना चोर हो॥जी॥दे॥ मन॥मा॥ ॥वली॥३॥ किंगारा तव जीणे खरे, प्र०॥ विण वादल तिहां मोर हो॥हलुए हनुए शनैः शनैः, प्र०॥तमेकीधुं तव जोर हो ॥ जी० ॥ दे॥ मन ॥ मा० ॥ प्र० ॥ वली ॥४॥ हुँलाजी नीचुं जोश रही, प्र०॥ त्यारे आप्यु तमे चीर हो ॥ ते सहु केम गयुं विसरी, प्र॥ लाल नणदीना वीर हो ॥ जी० ॥ दे॥ मन
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(३७) ॥ मा॥ प्र० ॥ वली ॥ ५ ॥ लख्या लेख मटे नहीं, प्र॥ वरष बार वियोग हो ॥ नाविने वशे मोगव्यो, प्र॥ पुण्ये पामी संयोग हो ॥ जी० ॥ दे ॥ मन ॥ मा० ॥ प्र॥ वली० ॥ ६ ॥ जुवो विमासीने तमे, प्र॥ए सघलां सहीनाण हो । मनशुं ते लाज्यो घणुं, वाहला माहारा वनितानी सुणी वाण हो ॥ जी० ॥ दे० ॥ मन ॥ माग ॥ ॥ वली० ॥ ७॥ उदय अढारमी ढालमां, वाह ॥ कहे सुणजो सहु कोय हो ॥ जग माहे जोतां सही, वा० ॥ करम करे ते होय हो ॥जी॥ दे०॥ मन ॥ मा०॥ प्र० ॥ वली०॥ ॥
॥दोहा॥ ॥पीयु कहे सांजल हे प्रिये, आज लगे अरधांग ॥ निश्चय में जाणी नहीं, महियारीने खांग ॥१॥ आप जणावत आवीने, जो तुं गणिका गेह ॥ साचुं मानत तो सही, हं तुज वयण सनेह ॥२॥ ॥ ढाल उंगणीशमी ॥जरमर जरमर हो शेलामारु
वरसे लो मेह ॥ ए देशी॥ ॥ में जाएयु हो वाहालो माहारो पीयुमो रीसाल, पासे वेश्या पण वींडीनो कमो ॥ तेह साथे
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(३५) हो बांधी दृढ प्रीत अजंग,वली विशेषे वाहालो तेणे वांकमो ॥१॥ कयुं माने हो तो था मेरु समान, जो न माने तो मेरु थकी पहुं ॥ आदेरणी हो थर हुँ आलोचीने एम, मदिन मिले मालिका उंबर चहुं॥२॥देखी देखी हो वाहाला माहारा-तुम देशर, वियोग तणां पुःख जाये मुमें विसरी ॥ गणिकाए हो खाधो हतो जे माल, बमणो वाल्यो ते जुर्म में बुझे करी ॥३॥वेणी वीणा हो वीजणो वेश्या ए चार, कर पसाय आपे ते सुख सदा ॥ कर खेंची हो जव रहीए सुणो खामी, पूरव गुण नवि संजारे तदा ॥४॥गणिका सम हो नहीं को निगुणी जात, धन खूटे बटकी रहे वेगली ॥ फरी सामु हो जुवे नहीं एक वार, कयवन्नानी पेर सुपरे न सांजली ॥५॥ तात जननी हो जोये तमारी वाट, आठे पोहोर उचाट करे घणो ॥परिजन पण हो सहु धरे मनमां खेद, खबर पूढे नित्य नाथ जे पुर तणो ॥६॥ चंपावर्णी हो चतुरा हुं चांपुं पाय, अष्टांग लोग नला नित्य नोगवो ॥ पोढो ढोलीये हो वाहाला हुं ढोढुं वाय, सरस संयोगे गोरस रस जोगवो ॥७॥ व्यंजन युत हो बेसो सङनने पांत, खटरस नोजन करो
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(४०) मनखांतशुं ॥ उपर आपुं हो तरुणी हुँ ताजां तंबोल, षट्कतु सुख जोगवो नली जातशुं ॥ ॥जव माहे हो नमतां काल अनंत,दश दृष्टांते ए नरजवदोहेलो॥ तेह पामी हो पूरव पुण्य संयोग,उत्तम जननो योग न सोहेलो ॥ ए॥ एणी परे होसमजाव्यो निज स्वाम, धेर जश् मात पिताने पाये नम्यो ॥ पेखी हो हो सहु तस परिवार,सहसा वियोग तणोपुःख उपशम्यो ॥ १० ॥ लीलावती हो लागी सासुने पाय,बहु पुत्र जणजो आशीष दीधी इसी ॥ उंगणीशमी हो ढाले उदयरतन्न,वदे श्रोता सहु सुणजो मन उबसी ॥११॥
॥दोहा॥ ॥ सुख संसारनां लोगवे, दोगंडुक जेम देव ॥ नर नारी ते नेहगुं, दान दीए नित्यमेव ॥ १॥जलवट ने थलवट तणा, वणज करे वमहब ॥ सुमतिविलास मति आगलो, सहु काजे समरन ॥२॥अनुक्रमे तसु अंगज थयो, नामे वीरविलास ॥ नणी गणी लायक थयो, तव परणाव्यो तास ॥३॥ साते देत्रे ते सदा, लखमी लाखगमेह ॥खरचे मनखांते करी, जेम आषाढी मेह॥४॥णे अवसर आव्या तिहां, धर्मघोष सूरींद ॥ सुमतिविलास सपरिकरे,
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(४१) वंदे पद अरविंद ॥५॥ सर्व गाथा ॥३०६ ॥ ॥ ढाल वीशमी ॥ वणिज सखूणे रे विहाणे
__चालवू ॥ ए देशी ॥ ॥ परषद आगे रे ये मुनि देशना, सुणो संसारर्नु रूप हो॥हो रे चित्त चेतजो॥ जग माहे जोतां रे को केहगें नहीं, अरथे लागे अनूप हो ॥ हो रे॥१॥ खारथ सुधी रे सहु खुंजु खमे, जेम पूजणी गायनी लात हो॥हो॥ हुँधेमारे रे बुढीने जुर्ज, एम अनेक अवदात हो ॥ हो ॥२॥धूरा वहे रे धोरी जिहां लगे, तिहां लगे चार गुवार हो॥ हो॥नाथे साही रे घी पाये वली, पड़ी न नीरे चार हो ॥ होण ॥३॥ सुतने धवरावे रे माता खारथे, खारथ सुत धावंत हो॥हो॥दहेणुंदीजे रेलहेणुं लीजीए, नाषे एम जगवंत हो॥ हो॥४॥ सगपण सघलां संसार संबंध लगे, जे करे पुण्य ने पाप हो॥हो॥ नवानो उधारो रे जूनां जोगवे, कोण बेटो कोण बाप हो। हो ॥५॥ पोहोती अवधे रे कोय परखे नहीं, कीजीए कोमि उपाय हो॥हो॥ राख्युं ते केहy रे कोइ नवि रहे, पाका पानने न्याय हो ॥ हो॥६॥ मोहनी जाले रे सहु मुंजी रह्यो, एकराग ने बीजो
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(४२) वेष हो ॥ हो० ॥ बलवंत बन्ने रे बंधन ए कह्यां, ते माहे राग विशेष हो ॥ हो ॥ ७॥ जे जेम करे रे ते तेम जोगवे, कमुया कर्मविपाक हो ॥हो॥ विषयनो वाह्यो रे जीव चेते नहीं, खातो फलं किंपाक
हो ॥ हो॥ ७ ॥ आखर सहुने रे उठी चालवू, कोआज ने कोई काल हो ॥ हो ॥ परदेशी आणां रे पानं नवि वले, ए संसारनी चाल हो ॥ होण ॥ए ॥ नरपति सुरपति जिनपति सारिखा, रही न शके घमी एक हो । हो॥ तो बीजानो रे कहो शो श्राशरो, कालशु केही टेक हो॥ हो ॥ १० ॥ एम जाणीने रे धर्मने आदरो, केवलिजाषित जेह हो॥ हो ॥ वीशमी ढाले हो उदयरतन वदे, संसारमा सार एह हो ॥ हो ॥ ११ ॥ सर्व गाथा॥३१७॥
॥दोहा॥ ॥ पूछे अवसर पामीने, मुनिने लीलावती ताम ॥ वियोग लह्यो में कंतनो, कोण कमें कहो वाम ॥१॥ म सुणी मुनि कहे परवे, तुं हती राजकुमार ॥ पोपट राख्यो पांजरे, तें घमी साढी बार ॥२॥ कंत हरीने जे कस्यो, सूमीने संताप ॥ते तें श्णे नवे अनुजव्यु, पूरव जवर्नु पाप ॥३॥वमबीजांनी परे वधे,
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(४३)
कर्म शुन्जाशुन दोय ॥ घमी प्रमाणे वरष इहां, एम तुजने थयां जोय ॥ ४ ॥ जातिस्मरण पामी तदा, लीलावती तेणी वार ॥ दीक्षा ले ते दंपती, सुतने सोंपी घरनार ॥५॥चारित्र चोखं पालीने, देवलोक गयां दोय॥एकज जवने आंतरे,शिवपद लेशे सोय॥६॥ ॥ढाल एकवीशमी ॥ शालिन धनो
कषिराया ॥ ए देशी ॥ ॥लीलावती ने सुमतिविलासे,संयम शुद्ध आराधी जी ॥ नरक तिर्यंच तणी गति बेदी, सुरनी लीला लाधी जी॥ लीला॥१॥एकावतारी थयां नर नारी, तेहने वंदन माहारी जी ॥ होजो होशे जे संयम पाले, तेहनी जाउं बलिहारी जी ॥ ली०॥२॥ तपगबनी राजधानी केरो, श्रीराज विजय सूरि राजा जी॥श्रीरतनविजय सूरिवर तसु पाटे,मेरु समी जसु माजा जी ॥३॥ गुरु मां हीररत्न सूरि गिरुवो, जवाहीरमांजेम हीरो जी॥तसु पाटे जयरत्न सूरींदो, मंदर गिरि परे धीरोजी॥४॥ संप्रति जावरत्न सूरि प्रतपे, श्रीहीररत्न सूरि केरो जी ॥ पंमित लब्धिरत्न महा मुनिवर, वारु शिष्य वडेरो जी॥५॥तसु अनुचर वाचकपद धारी, श्रीसिफिरत्न सुखकारी जी॥
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() मेघरत्न गणिवर तसु विनयी, अमररत्न आचारी जी ॥६॥ शिवरत्न तसु शिष्य सवार, पामी तास पसायो जी ॥ ए में वारु रास बनायो, आज अधिक सुख पायो जी॥७॥ वरष सत्तरसें समस: आसो, वदि बह ने सोमवार जी ॥ मृगशिर नदात्र ने शिवयोगे, गाम उनावा मकार जी॥७॥ नीमनंजन प्रज्जु पास पसाये, लीलावतीनी लीला जी ॥ सुमतिविलाल संयोगे गाइ, सुणी व्यापे शिवलीला जी ॥ए॥ एह कथा जे नावे नणशे, एकमना सांजलशे जं। ॥ फुःख तेहनां सवि पूरे टलशे, मनना मनोरथ फलशे जी ॥ १० ॥ धन्यासीरी रागे सोहावी, ए एकवीशमी ढाल जी ॥ उदयरतन कहे आज में पामी,सुखसंपत्ति सुरसाल जी॥१९॥सर्व गाथा॥३३॥
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॥ इति श्रीलीलावती राणी १ अने सुमतिविलास शेग्नो
रास संपूर्ण ॥
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(४५)
॥ अथ ॥ ॥ जगडूशा शेग्नी चोपाई॥
॥दोहा॥ ॥पास जिनेसर पाय नमी, प्रणमी श्रीगुरु पाय ॥ जगडूशा सुरला तणा, गुण गातां सुख थाय ॥१॥ राजा करण मरी करी, पोहोतो सरग मकार ॥कंचनदान प्रनावथी, पग पग रहे मनोहार॥॥मानवनव जो पामीए, तो सही दीजे अन्न ॥ देवलोकथी अवतस्यो, जगडूशा धन धन्न ॥३॥
॥ ढाल चोपाश्नी ॥ ॥जंबूझीप शोहे सुविचार, दक्षिण जरत तिहां मनोहार ॥ सामापचवीश आरज देश, धर्म करे श्रावक सुविशेष ॥१॥लाट नोट अने करणाट, गुजर मालव ने मेवाम ॥ कल देशमां जगडू थयो, श्रीमालीकुल दीवो कह्यो ॥२॥ जजेसर पाटण सुप्रसिद्ध, धण कण कंचण रुक समृ॥चोराशी चहुटां सुविशाल, देवल दीठे काकजमाल ॥३॥ व्यवहारी वासे त्यां वसे, शाह सुरला कर्मी उनसे ॥ जेहने कोटी
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(४६) एकसो आउ, तेहने जाचे चारण नाट॥४॥ वहाण चल्यां घरथी दशदोय, देश परदेशे कीरति होय ॥ सुख जोगवतां नारी गर्न लहे, अनुक्रमे नाम ते जगडू कहे ॥५॥ एक दिन विचरंतो अणगार, चोमासु रहेवा तेणी वार ॥ आचारज आचारे करी,आतम राखे निज संवरी ॥६॥ पूरव कर्म तणे संयोग, धन खूट्युं वली कर्मने योग ॥ निज नवकार सदा मन धरे, सामायिक पमिकमणुं करे ॥ ७॥ श्रावकव्रत पारी घर जाय, जगडू बेगे एकांते श्राय ॥ चोक मांहे गुरु आव्या वही, संकट वेध देखे तिहां सही ॥७॥ तारामंगल देखी धूणे शीश, चेलो पूजे नामी शीश ॥ गुरु कहे चेला सांचल वात, महियल काल होशे पांच सात ॥ ए॥ तो किम करशे सयल संसार, जगडू करशे दीनोधार॥ पाय लागीने निज घर जाय,जगमनमां अचरिज थाय ॥ १० ॥ शुज दिवस गुरु जोश दीए, मंत्रादिक मंत्र करी लीए ॥ एकवीश कलशा धरती मांद, आकज उग्यो धोलो ज्यांय ॥ ११॥ प्रगट्यो पुण्य तणो अंकुर,पाम्या लक्ष्मी प्रबल पडूर ॥वाणोतर धन लेखो करे, धन देश्ने ए कण संच करे ॥ १२ ॥ जिहाज
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(४७) चलावे जगडू बहार, पुण्यसंयोगे पहोतां पार ॥ लाखगमे लाज थाये जिहां, अवर किरियाणां लीधां तिहां ॥ १३॥ बावन गजनी शिला दोय, लाख टका दश सीधी सोय ॥ अवर वस्तु वणजी ने बहु, किम करी आवे छीपे सहु ॥१४॥अर्ध मारगाव्या ते वही, तेजमतूरी दीठी सही ॥ नांगर नाखी संचज करी, तेजमतूरी वहाणे जरी ॥ १५ ॥ अनुक्रमे आव्या निज पुर जणी, खबर करावे धान्यज तणी ॥ देशदेशंतर सेवक गया, धान्य लश्ने कोग जस्या ॥ १६ ॥ पत्र लखावी त्रांबा तणा, दीन हीन खेश्रांकज तणा॥जे आवीने मांडे हाथ, तेहने आपे हाथोहाथ ॥ १७ ॥ संवत् बार पनरोतेरो काल, पमीयो चिहुँ खंगमाहे उकाल ॥राय विसलदे पाटण धणी, खबर करावे अन्नज तणी ॥ १०॥ वणिक तेमावी कहे राजान, राय साधारण सुण्या के कान ॥ पूरो अन्न के मूको बिरुद, श्म बोल्या विसलदे रुद्द ॥१॥ जगडू कहे कोगरे घणां, धान्य स्वनां ले अन्नज तणां ॥ रांक वमो बुं हुं ताहरो, कार्य समारो ए माहरो ॥२०॥ वम नीखारी विसल राय, आठ सहस्र मूमा देवराय ॥ नगरपळानो राय हमीर, बार
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________________ (40) सहस्स मूमा दे धीर ॥२१॥एकवीश दीधा गज सुलतान, अढार सहस्स मालवपति जाण // मेदपाटनो राय प्रताप, बत्रीश सहस्स मूमा मुज आप॥२५॥ शत्रुजय गिरनारे वही, दानशाला मंमावे सही॥ चारे खंगमाहे जगडू शाह,पुण्ये लीए लखमीनो लाह // 23 // इंड चंड़ के सुरतरु सार, मानव नहीं ए सुर अवतार // धन धन जाति श्रीमाली तणी, जेहनी कीरति चिहुं दिशे जणी // 24 // सत्तर नन षट् श्रावण मास, एह संबंध कस्यो उदास ॥शांतलपुर चोमासुं रही, श्रावकजनने आदरे कही // 25 // पंमित मांहे प्रवर प्रधान, वीरकुशल गुरु परम निधान // सौजाग्यकुशल सद्गुरु सुपसाय, तास शिष्य केशर गुण गाय // 26 // इति जगडू प्रबंध चोपा समाप्त // Jain Educationa International For Personal and Private Use Only