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॥ अथ ॥
॥ पंमित श्री उदयरत्नजी महाराजकृत लीलावती राणीने सुमतिविलासनो रास प्रारंभः ॥
॥ दोहा ॥
॥ परम पुरुष प्रभु पास जिन, सरसती सद्गुरु पाय ॥ वंदी गुण लीलावती, बोलुं बुद्धि बनाय ॥ १ ॥ लीला लहेर लीलावती, सुमति विलास समुद्र ॥ दिव्य गाशुं ए दंपती, उत्तम गुणे अक्षुद्र ॥ २ ॥ कोण ते दंपती किहां हवां, यदि थकी खाचर्ण ॥ कहुं तेणे जे जे करयां, सांजलजो धरी कर्ण ॥ ३ ॥ गुण थुणतां गुणवंतना, निर्गुण पंण गुणवंत ॥ थाये थोमा कालमां, लीला मुक्ति लहंत ॥ ४ ॥
॥ ढाल पहेली ॥ काढबानी देशी ॥
॥ जंबूद्वीप मकार, जरत नामे हो क्षेत्र बे तेहनो ॥ जोय पांच सें विस्तार, उपर बबीश हो कला बे जेहनो ॥ १ ॥ मध्य जागे मनोहार, राजे गिरिवर हो वैताढ्य रूपा तणो ॥ ते उपर निरधार, विद्याधरनो हो वास सोहामणो ॥ २ ॥ गंगा सिंधु दोय, सरिता
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