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________________ (४६) एकसो आउ, तेहने जाचे चारण नाट॥४॥ वहाण चल्यां घरथी दशदोय, देश परदेशे कीरति होय ॥ सुख जोगवतां नारी गर्न लहे, अनुक्रमे नाम ते जगडू कहे ॥५॥ एक दिन विचरंतो अणगार, चोमासु रहेवा तेणी वार ॥ आचारज आचारे करी,आतम राखे निज संवरी ॥६॥ पूरव कर्म तणे संयोग, धन खूट्युं वली कर्मने योग ॥ निज नवकार सदा मन धरे, सामायिक पमिकमणुं करे ॥ ७॥ श्रावकव्रत पारी घर जाय, जगडू बेगे एकांते श्राय ॥ चोक मांहे गुरु आव्या वही, संकट वेध देखे तिहां सही ॥७॥ तारामंगल देखी धूणे शीश, चेलो पूजे नामी शीश ॥ गुरु कहे चेला सांचल वात, महियल काल होशे पांच सात ॥ ए॥ तो किम करशे सयल संसार, जगडू करशे दीनोधार॥ पाय लागीने निज घर जाय,जगमनमां अचरिज थाय ॥ १० ॥ शुज दिवस गुरु जोश दीए, मंत्रादिक मंत्र करी लीए ॥ एकवीश कलशा धरती मांद, आकज उग्यो धोलो ज्यांय ॥ ११॥ प्रगट्यो पुण्य तणो अंकुर,पाम्या लक्ष्मी प्रबल पडूर ॥वाणोतर धन लेखो करे, धन देश्ने ए कण संच करे ॥ १२ ॥ जिहाज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005388
Book TitleLilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1920
Total Pages48
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size3 MB
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