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(२५) अग्यारमी ढाले उदय वदे हो लाल, विधविध करती विलास ॥म॥मुह मचकोमी महियारमी हो लाल॥
॥ दोहा॥ ॥ दीठी महियारी दीपती, निरुपम रूप निवास ॥ मन चलीयुं महेता तणुं, तव फेमस तास ।।१। कहो महियारी किहां वसो, कन्हे भुताहा नाम कोण कुले तुं उपनी, कहे कोणताहाखाम
॥ ढाल बारमी ॥ हवे न जाउ माहेर
__ वेचवा रे लो॥ ए देशी ॥ ॥नाम सलूणी माहरूं रे लो, जातनी बु नरवाम॥ महारा वालाजी हो, हुँ रे श्रावी बु महि वेचवा रे लो ॥ राजपुरे वासो वसुंरे लो, हेजाली बुं हाम॥ म॥ हुँ रे ॥ १॥ खामी डे शिर माहरे रे लो, हणु नामे हुसनाग ॥ म ॥ महिषी जे माहारे मंदिरे रे लो, दहीं फुधनो ने लाग ।। म ॥ हुं० ॥२॥ पूडो बोशे कारणे रेलो, शंकर ने विवशाल॥म॥ उली जात आहेरनी रे लो, लोक चमावशे आल ॥ म ॥ हुं ॥३॥ खांते खोटी कां करो रे लो, माहार बे घरनु काम ॥ म० ॥ वाट जोता हशे वाबरु
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