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(२४) चार॥लाज मूकहोने मुख थकी,एकज थाणे गर॥१॥ ॥ ढाल अगीयारमी ॥ कलालणी, तें महारो
पीयु नोलव्यो हो लाल ॥ ए देशी ॥ ॥ साहेबजी ॥ सांजलो शेठजी विनति हो लाल, तुमे गे चतुरसुजाण ॥साहेबजी।मूल किस्युं तुम थागले हो लाल, अमे करीए अजाण ॥१॥ सा ॥ मुह मचकोमा महियारमी हो लाल, बोले मीग बोल ॥सा ॥ अलवे आंखो उलालती हो लाल, बूंघटनो पट खोल ॥२॥ सा०॥तुमे उत्तम व्यवहारीया हो लाल, समजो सघली पेर ॥ सा॥ दाने पुण्ये आगला हो लाल, जाणे दरियानी लहेर ॥३॥ सा ॥ अधम जाति बाहेरनी हो लाल, न लडं नव ने तेर ॥ सा॥अमने कांश नावडे हो लाल, शेर घणुं के पाशेर ॥४॥ महियारमी ॥ बाघो ताणी बूंघटो हो लाल, पानी राखे बाद ॥ महियारमी ॥ वात करे विनोदमां हो लाल, नाजुक नाखे बाह ॥ ५॥म ॥ नानी देखाडे नयणे हसे हो लाल, आलसे मरडे अंग ॥म०॥ उरनो बेहेमो खोसे फरी हो लाल, मसे अधर सुरंग ॥६॥म ॥ कुच देखाडे कंडू मिषे हो लाल, मरकलडे करे हास ॥ म ॥
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