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(२५) रही, जाणे कलाश्यो मोर स० ॥ अ॥७॥ चंडमुखी मृगलोचनी, सिंहलंकी सुकुमाल सम्॥ पाय प्रमाणे मोजमी, कोकिलकंठ रसाल सण ॥ अफ ॥ए ॥ कोमल कमलशी बांहमी, चतुरा चंपक वान स०॥ चूडे चटक लागी रही,त्रोटी ललके कान स॥ अ॥ १०॥ माथे मटुकी काचनी, उढाणी अनूप स० ॥ लांबी बाद लोमावती, चाली ते धरी चूंप स० ॥ अ॥ ११॥ महियारी महि वेचवा, शेरीए पाडे साद स० ॥ वेरण पहेला नव तणी, तेहथु करवा वाद स० ॥ अ० ॥ १२ ॥ लाज तजीने लीलावती, सजी सोले शणगार स० ॥ नवमी ढाले नीसरी, उदय कहे नगर मकार स० ॥ अ० ॥ १३ ॥
॥दोहा॥ ॥गश्ते गणिका शेरीए, दिवस चढ्यो घमी चार ॥ बेगे दीगे बारणे, तव तिहां निज जरतार॥१॥ सुमति विलास तव तेहने, देखी रूप अमूल ॥ मूडे वल देतो थको, महिनुं पूजे मूल ॥२॥ ॥ ढाल दशमी ॥ हुँ वारी रंग ढोलणा ॥ ए देशी॥
॥ महियारी मुख देखीने हो राज, मनशुं पामी मोह अपार रे ॥ हसीने रह्यां लोयणां ॥ हाथा
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