________________ (40) सहस्स मूमा दे धीर ॥२१॥एकवीश दीधा गज सुलतान, अढार सहस्स मालवपति जाण // मेदपाटनो राय प्रताप, बत्रीश सहस्स मूमा मुज आप॥२५॥ शत्रुजय गिरनारे वही, दानशाला मंमावे सही॥ चारे खंगमाहे जगडू शाह,पुण्ये लीए लखमीनो लाह // 23 // इंड चंड़ के सुरतरु सार, मानव नहीं ए सुर अवतार // धन धन जाति श्रीमाली तणी, जेहनी कीरति चिहुं दिशे जणी // 24 // सत्तर नन षट् श्रावण मास, एह संबंध कस्यो उदास ॥शांतलपुर चोमासुं रही, श्रावकजनने आदरे कही // 25 // पंमित मांहे प्रवर प्रधान, वीरकुशल गुरु परम निधान // सौजाग्यकुशल सद्गुरु सुपसाय, तास शिष्य केशर गुण गाय // 26 // इति जगडू प्रबंध चोपा समाप्त // Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org