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________________ (४२) वेष हो ॥ हो० ॥ बलवंत बन्ने रे बंधन ए कह्यां, ते माहे राग विशेष हो ॥ हो ॥ ७॥ जे जेम करे रे ते तेम जोगवे, कमुया कर्मविपाक हो ॥हो॥ विषयनो वाह्यो रे जीव चेते नहीं, खातो फलं किंपाक हो ॥ हो॥ ७ ॥ आखर सहुने रे उठी चालवू, कोआज ने कोई काल हो ॥ हो ॥ परदेशी आणां रे पानं नवि वले, ए संसारनी चाल हो ॥ होण ॥ए ॥ नरपति सुरपति जिनपति सारिखा, रही न शके घमी एक हो । हो॥ तो बीजानो रे कहो शो श्राशरो, कालशु केही टेक हो॥ हो ॥ १० ॥ एम जाणीने रे धर्मने आदरो, केवलिजाषित जेह हो॥ हो ॥ वीशमी ढाले हो उदयरतन वदे, संसारमा सार एह हो ॥ हो ॥ ११ ॥ सर्व गाथा॥३१७॥ ॥दोहा॥ ॥ पूछे अवसर पामीने, मुनिने लीलावती ताम ॥ वियोग लह्यो में कंतनो, कोण कमें कहो वाम ॥१॥ म सुणी मुनि कहे परवे, तुं हती राजकुमार ॥ पोपट राख्यो पांजरे, तें घमी साढी बार ॥२॥ कंत हरीने जे कस्यो, सूमीने संताप ॥ते तें श्णे नवे अनुजव्यु, पूरव जवर्नु पाप ॥३॥वमबीजांनी परे वधे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005388
Book TitleLilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1920
Total Pages48
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size3 MB
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