Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 43
________________ (४३) कर्म शुन्जाशुन दोय ॥ घमी प्रमाणे वरष इहां, एम तुजने थयां जोय ॥ ४ ॥ जातिस्मरण पामी तदा, लीलावती तेणी वार ॥ दीक्षा ले ते दंपती, सुतने सोंपी घरनार ॥५॥चारित्र चोखं पालीने, देवलोक गयां दोय॥एकज जवने आंतरे,शिवपद लेशे सोय॥६॥ ॥ढाल एकवीशमी ॥ शालिन धनो कषिराया ॥ ए देशी ॥ ॥लीलावती ने सुमतिविलासे,संयम शुद्ध आराधी जी ॥ नरक तिर्यंच तणी गति बेदी, सुरनी लीला लाधी जी॥ लीला॥१॥एकावतारी थयां नर नारी, तेहने वंदन माहारी जी ॥ होजो होशे जे संयम पाले, तेहनी जाउं बलिहारी जी ॥ ली०॥२॥ तपगबनी राजधानी केरो, श्रीराज विजय सूरि राजा जी॥श्रीरतनविजय सूरिवर तसु पाटे,मेरु समी जसु माजा जी ॥३॥ गुरु मां हीररत्न सूरि गिरुवो, जवाहीरमांजेम हीरो जी॥तसु पाटे जयरत्न सूरींदो, मंदर गिरि परे धीरोजी॥४॥ संप्रति जावरत्न सूरि प्रतपे, श्रीहीररत्न सूरि केरो जी ॥ पंमित लब्धिरत्न महा मुनिवर, वारु शिष्य वडेरो जी॥५॥तसु अनुचर वाचकपद धारी, श्रीसिफिरत्न सुखकारी जी॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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