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(४१) वंदे पद अरविंद ॥५॥ सर्व गाथा ॥३०६ ॥ ॥ ढाल वीशमी ॥ वणिज सखूणे रे विहाणे
__चालवू ॥ ए देशी ॥ ॥ परषद आगे रे ये मुनि देशना, सुणो संसारर्नु रूप हो॥हो रे चित्त चेतजो॥ जग माहे जोतां रे को केहगें नहीं, अरथे लागे अनूप हो ॥ हो रे॥१॥ खारथ सुधी रे सहु खुंजु खमे, जेम पूजणी गायनी लात हो॥हो॥ हुँधेमारे रे बुढीने जुर्ज, एम अनेक अवदात हो ॥ हो ॥२॥धूरा वहे रे धोरी जिहां लगे, तिहां लगे चार गुवार हो॥ हो॥नाथे साही रे घी पाये वली, पड़ी न नीरे चार हो ॥ होण ॥३॥ सुतने धवरावे रे माता खारथे, खारथ सुत धावंत हो॥हो॥दहेणुंदीजे रेलहेणुं लीजीए, नाषे एम जगवंत हो॥ हो॥४॥ सगपण सघलां संसार संबंध लगे, जे करे पुण्य ने पाप हो॥हो॥ नवानो उधारो रे जूनां जोगवे, कोण बेटो कोण बाप हो। हो ॥५॥ पोहोती अवधे रे कोय परखे नहीं, कीजीए कोमि उपाय हो॥हो॥ राख्युं ते केहy रे कोइ नवि रहे, पाका पानने न्याय हो ॥ हो॥६॥ मोहनी जाले रे सहु मुंजी रह्यो, एकराग ने बीजो
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