Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४७) चलावे जगडू बहार, पुण्यसंयोगे पहोतां पार ॥ लाखगमे लाज थाये जिहां, अवर किरियाणां लीधां तिहां ॥ १३॥ बावन गजनी शिला दोय, लाख टका दश सीधी सोय ॥ अवर वस्तु वणजी ने बहु, किम करी आवे छीपे सहु ॥१४॥अर्ध मारगाव्या ते वही, तेजमतूरी दीठी सही ॥ नांगर नाखी संचज करी, तेजमतूरी वहाणे जरी ॥ १५ ॥ अनुक्रमे आव्या निज पुर जणी, खबर करावे धान्यज तणी ॥ देशदेशंतर सेवक गया, धान्य लश्ने कोग जस्या ॥ १६ ॥ पत्र लखावी त्रांबा तणा, दीन हीन खेश्रांकज तणा॥जे आवीने मांडे हाथ, तेहने आपे हाथोहाथ ॥ १७ ॥ संवत् बार पनरोतेरो काल, पमीयो चिहुँ खंगमाहे उकाल ॥राय विसलदे पाटण धणी, खबर करावे अन्नज तणी ॥ १०॥ वणिक तेमावी कहे राजान, राय साधारण सुण्या के कान ॥ पूरो अन्न के मूको बिरुद, श्म बोल्या विसलदे रुद्द ॥१॥ जगडू कहे कोगरे घणां, धान्य स्वनां ले अन्नज तणां ॥ रांक वमो बुं हुं ताहरो, कार्य समारो ए माहरो ॥२०॥ वम नीखारी विसल राय, आठ सहस्र मूमा देवराय ॥ नगरपळानो राय हमीर, बार
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