Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 33
________________ ( ३३ ) ताहारो अवतार, उत्तम कुल हुं उपन्यो ॥ ३ ॥ जो जाणे जग कोय, मुज रहेतां तुम मंदिरे ॥ श्जत बी होय, कीर्ति जाये कुल ती ॥ ४ ॥ हुं राखुं एणी रीत, जेम कोइ जाणे नहीं ॥ परिघल दाखं प्रीत, खोटो म करो खरखरो ॥ ५ ॥ प्यारी जीवन प्राण, तम में आप्यो तुने ॥ वली श्यां करुं वखाण, तुं गोकुलनी गोरमी ॥ ६ ॥ सर्व गाथा ॥ २५६ ॥ ॥ ढाल सोलमी ॥ माहारे खांगणे हो, जीणा मारु वावमी ॥ ए देशी ॥ ॥ माहारी पूठे हो, पगले पगले पाधरा, यावोने चाहे ॥ मनमोहना ॥ हसी बोलो हो राज, जमर मोशुं रंग करो ॥ थें तो रंग करो लाजो हो कां ॥ मनमोहना ॥ इसी० ॥ १ ॥ चागलची हो, ते अबला चाले उंचे मुखे, ते तो नीची नजरे शेठ ॥ मन० ॥ पूठेथी हो, बीही तो बीहीतो पगलां जरे, कोइ सामी न मांडे दृष्ट ॥ मन० ॥ हसी० ॥ २ ॥ जले शुकने हो, चतुरा चाले चमकती, महेताने कहे मुज खाम ॥ मन० ॥ नूतनी परे हो, वनखंग मांहे ते जमे, षट् मास लगे नावे धाम ॥ मन० ॥ इसी० ॥ ३ ॥ जिहां राखुं हो, तिहां तमे रहेजो रंगशुं, सेवा करीश For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org ली० ३ Jain Educationa International

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