Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 31
________________ (३१) ॥४॥ तुज दहीं विना सुण माय, महेतोजी धान न खाय॥ते माटे बोल्युं पलजो,मन माहे मत खलनलजो ॥५॥ बोल्युं जो पालो तुमे साचुं, उधारे तो हुँ राचुं ॥ महेते तव वाचा दीधी, गणिका पण बोली सीधी॥६॥ सलूणी कहे शिर नामी,साचुं कहुं सुणजो खामी ॥ उधारानुं हुं लेखं, इणे मिषे मंदिर देखें ॥७॥ पाबी वली पूजे विचार, कहे तोमटकी लावू चार ॥ त्यारे वेश्या कहे सुणो बाइ, ताहरे तो खोट न कां॥॥मोहोर बे देतां निरधारी, अमने लागे जारी ॥ जेम तेम करी एक जो थाय, तो माणसमां रदेवाय ॥ ए॥ मीयांनी बले मूब दाढी, दास दीवो करे दंत काढी ॥ ए श्हां मले जे उखाणो, महेतो दही सारे देवाणो ॥ १०॥ त्यारे महतो इसीने बोले, कोये नावे दहीने तोले ॥दहीं मुधे एहने नविधाए, घर वेचीने पण खाए ॥ ११ ॥ शुं कीजे साकर डाख,अमृत ने यांबा साख ॥ए वादनी पेरजे जाणे, ते तो नित्य दीवाली माणे ॥ १२ ॥ एवी महेसानी मुणी वाणी, गणिका ते रोष जराणी ॥ कहे कोप चढ़ी धरी बाहे, झुं देखो को घर मांहे ॥१३॥ उधारे जे खाय, सरवाले तेह सीदाय ॥ महियारी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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