Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 36
________________ जेहवू रूप ले तेहy जी ॥३॥ सुणो महेताजी हो जी, तुम नारी तणी, शुक हुँ ना रे नामे लीलावती जी॥ सारंगपुरना हो जी, शेउनी सुता, रूपे करीने रंन हरावती जी ॥४॥ चीर पटोलां होजी, पहेरे सदा, चतुराएहनी रे तमने किसी कडं जी ॥ ज्ध बापुं बुं हो जी, नित जश् हुँ तिहां, वात ए सघली तेणे करी हुँ लहुं जी॥५॥ते पण इहां होजी, कहो तो तेमावीए, जोमी तमारी रे ने सही सारखी जी ॥ परणी कन्या होजी,शे कारण तजी, खोम तेहमां शी तमे पारखी जी ॥६॥ महेतो मुखथी हो जी, एम सुणी बोलीयो, तेहने शे कामे हां तेमीए जी॥ तिहां ने सुखणी हो जी,दाहाडोले पाधरो, सुता सिंहने कहो केम डेमीए जी ॥७॥ मनडु माहारं हो जी, मलीयुं तुजगुं, नजर न आवे बीजी कोश्सुंदरीजी॥सत्तरमी ढाले हो जी, उदयरतन कहे, युवतीए जोजो बुद्धि केहवी करीजी॥७॥ ॥दोहा सोरठी ॥ ॥ सहु कहे पुरुष सुजाण, मूरख जाति महिला तणी॥ पण सघलां सहीनाण, पूरूं ते प्रजुजी सुणो॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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