Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३४) सावधान ॥ मन ॥ लखमीचं हो, महारे घेर लेखु नहीं, दहीं सुधे वालीश वान ॥ मन॥हसी०॥॥ अपूरव हो, कला एवी कोश केलवी, स्वामीशुं श्रावी घेर ॥ मन॥शेरीमांहे हो, पामोशीए पण ते किसी, कोणे न जाणी पेर ॥ मन ॥ हसी० ॥ ५॥पूरवनां हो, पुण्य प्रगट थयां,सवि जुधे वूग मेह ॥मना घणो नावे हो, खामी घेर आव्यो वही, नवला बांध्या नेह ॥ मन ॥ हसी० ॥ ६॥ आ जूनो हो, दिवस लागे रलियामणो, एम बोले अबला बाल ॥ मन० ॥ उलटशुं हो, उदयरतन कहे अहो, नवि ए कही सोलमी ढाल ॥ मन ॥ हसी बोलो. हो राज, जमर मोशुं रंग करो ॥ थे तो रंग करो लाजो जो कां ॥ म ॥ हसी० ॥ ७॥
___॥ दोहा सोरठी ॥ ॥ खामी पधारो सेज, कमाम जमी कहे कामिनी ॥ हैयडे आणी हेज, क्रीमा मनगमती करो ॥१॥ घण नेही प्रिया घेर, अरज करे आगल रही ॥कंत राता कंथेर, केलि मूकी शे कारणे॥२॥मुजशुं मांमो मोह, स्वर्ग तणां सुखजोगवो ॥ अरति तजी अंदोह, प्रजुजी श्हां प्रबन्न रहो ॥३॥ चिंता न करो चित्त,
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