Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 4
________________ (४) ॥ ढाल बीजी ॥ तट यमुनानो रे अति रलि ___ यामणो रे ॥ ए देशी॥ ॥ तेणे प्रस्तावे रे एक पन्नंगना रे,बेठी ने घर बार ॥ कामसेना नामे रे तेह कुमारनो रे, देखीने देदार ॥१॥ महा मोह पामी रे मनशुं मानिनी रे, हृदयमां उपन्यो राग ॥ सुधिबुधि नूली रे साहामुं जोतां थकां रे, लागी लगन अथाग ॥ महा ॥२॥ दरिसन थापी रे दिल लीधुं हरी रे,गणिका थगतनंग ॥ उप कोमी तेहनी रे रोमराय उखसी रे, अंगे प्रगट्यो अनंग ॥ म० ॥३॥ तव ते पूढे रे सखीने तारुणी रे,अहो अहो रूप उदार ॥कुमर केहनो रे अनिनव रूप शो रे, सहु पुरुषमा शिरदार ॥ म ॥४॥ सखी कहे इहां रे पुरमा शेठीयों रे, आपे अवारित दान ॥धवल घर उंचांरे फरहरे ध्वजा रे,तेहनो ए सुत रूपवान् ॥ म ॥५॥ जातां ने वलतां रे हवे तेजोषिता रे, विज्रम करे रे विलास॥मृगनी पेरे रे कुमरने पामवा रे, प्रीतनो मांड्यो रे पाश ॥म० ॥६॥ नादनो बांध्यो रे नित्य ते शेरीए रे, जोवा आवे ने जाय ॥ क्यारे कां आपे रे क्यारे बांहि धरे रे, अबला ते अकुलाय ॥ म० ॥ ७॥ केटलेक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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