Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 20
________________ (२०) ॥१०॥ अनुक्रमे ते आव्या वही हो लाल, निज गेहे जण दोय ॥ सु०॥ उदय ए आठमी ढालमा हो लाल, शुकन ते पुण्ये होय ॥ सु॥ शुकन॥११॥ ॥दोहा॥ ॥ ससरा सासु सांजलो, कहे महियारी वेश ॥ करी वालो हुँ वश करूं, बुद्धिबले सुविशेष ॥१॥ जो आवासे जोपरां, वासो मुजने वेग ॥ महिषी चारे मूलवो, जिम टायूँ उठेग ॥२॥ उरे थोमी पेटे घणी, लांबा अंचल जास ॥ वीज चरी अति चीगटी, जोटी मगावो खास ॥३॥बे सेंढी बेसामली, कोणी त्वचाए जोट ॥ पग डोटा लघु शिंगडे, महि माखणनो कोट ॥४॥महियारीने मिषे करी, पीयु माहारो परजात ॥ जो जश् गणिकाघरे, वहूनी सुणी ए वात ॥५॥ ससरे सघलो साज ते, मेली बाप्यो तंत ॥ नणंदने साथे तेडीने, गोरमी ते गुणवंत ॥ ६॥ गणिकाने मंदिर गश, प्रह उगमते सूर ॥ देखाड्यो तसु रथी, नणदीए नाथ सनूर ॥ ७॥ दातण करतो देखीयो, जिस्यो पंचायण सिंह ॥ सोल कला शशिहर समो, दिल चिंते धन्य दिह ॥ ॥ परनव पुण्य जेणे कस्वां, पूज्या जेणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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