Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(२१) जगवंत ॥ नणंद कहे जानी सुणो, ए सही तेहनो कंत ॥ ए ॥ सर्व गाथा ॥ १५ ॥
॥ ढाल नवमी॥ हमीरीयानी देशी ॥ ॥ नणंद नोजाइ ते बेहु जणां, फरी श्राव्यां निज गेह सलूणी ॥ महियारी थर मोदशं, हवे लीलावती तेह सलूणी ॥१॥ अजब बनी आहीरमी, मलपती मोहनवेल स०॥ रूपे रंन हरावती, गजगति चाले गेल स०॥ अजब॥२॥ धोली धावली पहिरणे, विच विच राता तार स० ॥ कोरे काला कांगरा, गले गुंजानो हार स॥अज॥३॥ उढण आबी लोबमी, ते आगल श्यां चीर स० ॥ पोसाये पट अंतरे, दीसे दिव्य शरीर स० ॥ अ॥ ४ ॥ नरत नरी सोहे कांचली, कसणे कस्या कुच दोय स० ॥ जाणे यंत्रनां तूंबमां, सरसतीए धस्यां सोय सम् ॥ अ॥५॥ वेणी वासग नागशी, गज गज लांबा केश स० ॥ घूघरीवालो गोफणो, उपे अद्जुत वेश स० ॥ अ॥६॥ कशे कसबी फूमका, खटके लोबमी मांहे स॥ पातल पेटी ने फूटरी, यौवन लहेरे जाय स० ॥ अ०॥७॥ दंत ऊबूके दामिनी, मुखनो मटको जोर स० ॥ नथ नाके थरकी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/87b1149132ef44334569c11a339d34c005b5f436954f2537f4a361aed050cb33.jpg)
Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48