Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१७) तन कहे जी ॥ सासरीए जे बेटी बोलावे, त्रेवा संघली ते लहे जी ॥ १५॥ सर्व गाथा ॥ १३४ ॥
॥दोहा॥ ॥ पवनवेग धोरी चले, कोटे घूघरमाल॥ सोवन खोली शिंगडे, अति सुंदर सुकमाल ॥१॥ जोपे वहेलज जोतरी, सांगी बनी पट सूत्र ॥ गामी बेगे गुमानगुं, दीसंतो अद्लुत ॥२॥ नयणे आंसु नीतरे, सहुशुं मागी शीख ॥ वहेले सासरवासणी, सलजी बेठी वीक ॥३॥ खेकी बहेव ते खांतशें, कहुं हवे शुकन विचार ॥ लीलावतीने जे थयां, ते सुणजो नर नार ॥ ४॥ सर्व गाथा ॥ १३ ॥ ॥ ढाल आठमी ॥ शहेर नढुं पण सांकडं
रे लाल ॥ए देशी॥ ॥ मालण पहेली सामी मली हो लाल, फल फूले नरी बाब॥ सुखकारी रे ॥ वदे शुकन लीलावती हो लाल, लही मनवंबित लान ॥सु ॥१॥ शुकन तणी वात सांजलो हो लाल, शुकने सीजे काज। सु ॥ शुकन साचां संसारमा हो लाल, शुकने सहीए राज ॥ सु०॥शुकन॥२॥सुत तेमी सामी मली हो लाल, सधवा नारी सुचंग ॥ सु०॥ श्रीफल
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