Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१७) सेवा करतां मन वश थाये, मगे मगे चढीए डुंगरे जी॥ लखतां लखतां लहीयो होवे, उद्यमे दारिद्यने हरे जी ॥४॥ ससरानी ए शीख सुणीने, वात एवी तेणे मन धरी जी ॥ दिवस फूरंतां पीयरे जाये, वैर वालु उद्यम करी जी ॥५॥ श्म चिंतीने उठी दादाने, वात कहे लीलावती जी ॥ वेश्याशुं जश वेर वसायु, सासरवासो करूं ते वती जी ॥६॥ दादा दखणी चीर मगावो,पांच पटानो घाघरोजी॥ कांचली मांहे नंग जमावो, मांडं वेश्याशुं मजागरो जी ॥७॥ नाक प्रमाण नथमी घमावो,पाय प्रमाणे मोजमी जी॥ हैया सोहंतो हार मगावो, काने त्रोटी हीरे जमी जी ॥ ॥ मांगवगढनी मेंदी मगावो, चंदेरीनी चूंदमीजी॥तेटलीदादाजी त्रेवममा रहेजो, घुघरीवाली घाटमी जी ॥ ए॥ सासरवासणने काजे जे जे, जोशए ते संजारीने जी॥ गवारा मांहे जरों गेले, विगतेशु विचारीने जी ॥१०॥वारु पांचे वस्त्र पहेरावो, ससराने रलियामणां जी॥ पाट 'पर्नेमी पटोनुं जोइए, सासरीयाने सोहामणां जी ॥ ११॥ सातमी ढाले सासरवासो, कीधो उदयर
ली०२
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