Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१५) के परधन बहु हत्या के में संताप्या साधु, के अणगल जल नयां ॥ए॥ गुरुने दीधी गाल के, पूज्य पराजव्या ॥ नरड्यां धान सजीव के, माणस साटव्यां ॥ अकरा कर अन्याय, कस्या में पूरवे ॥ पामी ए जरतार, तेणे हुँ या नवे ॥१०॥ कुमरीना सुणी बोल के, मावित्रने हृदे ॥ बेद पडे लही नेद के, खेद धरी वदे ॥धोढुं तेटबुं बुध, दीतुं तेणे संग्रह्यं ॥ लंपट लक्षण हीण, कुलदणो नवि लयं ॥ ११॥ रहो पुत्री मनरंग के, पुत्र तणी परे॥ आपणे घेर सदैव, शुं करवु ने सासरे ॥ कुमरीनुं मन तन्न, दावानल परे दहे॥ विरह तणी विकराल, हिये करवत वहे ॥ १२ ॥ बाले वेषे बापने, रमती आंगणे॥ यौवन लही जंजाल, पमी कुंथरी नणे ॥ वियोग में वेठ्यो न जाय, एणे उःखे वन वसुं ॥ सापण थक्ष ततकाल के, गणिकाने मसुं॥१३॥ लीलावती लख जाती, विलाप करे इस्या ॥ गिरि थाये शत खंम, निसासा मेले तिस्या॥ उदय कहे बही ढाल, विधाता जो मले॥तोपण लखीया लेख,बहीना नवि टवे॥१४॥
॥ दोहा ॥ ॥ पहेले आणे प्रेमशु,शेठ सदाफल सोय ॥ आव्यो
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