Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 14
________________ (१४) हर दिव्य, लागे मुने लाखसी ॥रोतां न खूटे रात, जाणे ए राखसी ॥३॥ श्म ते अबला बाल, फूरे मनशुं घणुं ॥ केहने कर्वा न जाय, ते कारण पुःख तणुं ॥ खामी विना समसाणशो, लागे सासरो । आतम रहे उदास, आपे कोण बासरो॥४॥ पीयरनी पलवाडे, जर रहेवु पडे ॥ पग मांडे तिहां बाल, सहेजे अवतां चडे ॥ निधणीयाती नार, घाले सहु नजरमां॥री न बेसे गम,दोरी जेम वज्रमां ॥५॥ पीयर पण अपमान, पामे ते सुंदरी॥ किहांये ते न समाय, नाथे जे परिहरी ॥ वसती उजम होय, के वाला विना सही ॥एम करी ते आलोच के, पीयर जर रही ॥६॥ मात आगल सवि वात, कही उतपातनी॥सुणी कालजानी कोर, दाजी तव मातनी ॥ घर वाला जे काज, कस्यां उजमनरे ॥तेह जमा जार, रह्यो वेश्याघरे ॥७॥ मात पिता मली ताम, विचार एवो करे ॥ तव कुंअरी ततकाल, नयण आंसु जरे ॥ शां में कीधां पाप, कहे एम कुंअरी॥ एकज तनया तात हुं, तम कुले अवतरी॥७॥फोमी सरोवर पाल, तोमी माल तरु तणी ॥ नांजी कस्यां व्रत नंग के, मारी में जूं घणी॥के में पीड्यां पर बाल, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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