Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 13
________________ (१३) ॥दोहा॥ ॥ लीला लीलावती तणी, रंगे जो एक रात ॥ वर जर वेश्याघर वस्यो, प्रगट थाते परजात॥१॥ जेहनुं मन जेहरांमत्यु, ते विण तिणे न रहाय ॥ जाख तणो तजी मांमवो, काग लिंबोली खाय ॥२॥ अजाण अधमने मान ये, उत्तमने अपमान हंस वरांसे हंसीने, बगलीने दे मान ॥३॥ हंसी बिचारी शुंकरे, बगली वाह्या हंस ॥ उत्तमनुं त्यां शुं गजु,अधम तणो जिहां अंश॥४॥सर्व गाथा ॥१२॥ ॥ ढाल बी ॥ नद। यमुनाके तार जडे-दोय पंखीयां ॥ ए देशी॥ ॥तिम लीलावती नार, पीयु पुःख तन दहे ॥ जग लामीशुं जोर, न चाले चुप रहे ॥ जाण्यु तुं साकर युक्त , उध तलावमी ॥ त्यां न मले नीर लगार, अहो वेला पमी ॥१॥ आंबो जाण। एह, पुरुष में आदस्यो॥ कर्मे थयो करीर,वरांसी जे ए वस्यो ॥ माहरो पीयु परघर वास, के घर नावे घमी॥ जोडं महारा वालानी वाट, जंची मेमी चमी ॥२॥ दाहामामां दश वार हुं, खमकीए रहुं खमी ॥ नजर न देखुं नाथ, जाये ३ तन जमी ॥ जुवन मनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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