Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 8
________________ केहन रे, जेम अन्यायी नूप ॥ व०॥ १० ॥ वेलो चड्यो जेम मांगवे रे, वली कस्यो विस्तार ॥ तेह पडे ताण्यो थको रे, नावे घर निर्धार ॥ व० ॥ ११॥ तेम गणिका तनु मांगवे रे,लोजी रह्यो लपटाय ॥ोमाव्यो बूटे नहीं रे, जो करे कोमी उपाय ॥व०॥ १२ ॥ उदय वदे अबला रसे रे,सबला जे महा शूर॥त्रीजी ढाले ते रहे रे, हरिणाची हजूर ॥ व ॥ १३ ॥ ॥दोहा ॥ सोरठी चालमां ॥ ॥ सुबुद्धि सदाफल शेव, ठंडं मन आलोचीने ॥ नूप तिने धरी नेट,जश्मल्या हवे जनक ते॥१॥कहे नृपने कर जोगी, स्वामी सुणो एक विनति॥खंपण लागे खोम, कुलने सही कुबोरुए ॥२॥ प्रचुजी प्रतपो पाट, जग मांहे तुमे जालमी॥वस्ति पाडे वाट, वेश्या मुज वेरण थ६॥३॥ शूरो तुं शिरताज, अरियण मूल उबापणो ॥ करो अमारुं काज, देशवटो एहने दीयो॥॥डींकनोलेवा बेह,सूरज साहामुंजोरए॥जोरावर होये जेह, निर्बलथी नवि नीपजे ॥५॥ ॥ ढाल चोथी ॥ जटीयाणीनी देशी॥ ॥ नूप जणे सुणो शेउ, करषण पियारो हो ढोर चरे जो आपणो ॥ तो झुं करे तिहां राय, मंदिर पर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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