Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 7
________________ (3) शृगार पहेरी शोनतो रे, ग्रही वली गर्थ अपार॥१॥ वणिकसुत रह्यो रे वेश्याघर जाय ॥ ए आंकणी ॥ लोपी कुलनी लाजने रे,मेहेली माय ने बाप॥गणिकाने घरे ते गयो रे, विषयनो जोजो व्याप ॥ वणि ॥२॥ सर्प तजे जेम कांचली रे, तेम तजी सहुनो नेह ॥ वेश्या तेणे वाहली करी रे,अनंगनो महिमा एह ॥ वणि ॥३॥ नारी नयणे नोलव्या रे, ते नर जूला अह ॥ हरि हर ब्रह्मा सारिखा रे, हजीयन लाधा तेह ॥ व० ॥४॥ पहेला यौवन पूरमां रे, थिर न रह्या जे थोन॥ते नर पमीया बापमा रे, जेम घर नांगो मोल ॥व०॥५॥ हवे ते हरिणादीए रे, आलिंग्योधरी उर ॥ पीन पयोधर पहाममां रे, नूलो पड्यो ते नूर ॥ व०॥६॥ नित्य नवली क्रीमा करे रे, नित्य नवला संयोग ॥ सरस सुनोजन साहेबी रे, जोगवे सुरना जोग ॥ व०॥७॥ गणिका कनकनी मुघमीरे, कुमर ते निर्मल नंग॥ नख ने मांस तणी परे रे, बांधी प्रीत अजंग ॥ व०॥॥ प्राण तजे पाणी विना रे, जेम जल माहे मीन ॥ तेम ते वनिताने वशे रे, अहोनिश रहे आधीन ॥ व०॥ए ॥ साकर सम थर सुंदरी रे, वाला थयां विषरूप ॥ कयुं न माने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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