Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
View full book text
________________
। १६ ) ( गद्य-पद्य ) एवं पैशाची। द्रविण भापा, दक्षिण भारत की भाषा, राक्षसी एवं मिश्र भाषा, देशी भापा आदि। इन सबके स्वरूप आदि पर विचार । ग्रन्थ के प्रमुख कथोपकथन-ग्राम-भट्टारकों, कोढ़ियों, ग्राम-महत्तरों एवं पिशाचों की बातचीत, १८ देशों के व्यापारियों की भाषा, मठ के छात्रों की बातचीत। इन सब में प्रयुक्त विभिन्न भापाएँ
एवं बोलियाँ। परिच्छेद ३. शब्द-सम्पत्ति ( २६२-२६९)
कुवलयमाला की शब्द-सम्पत्ति-लगभग २५० विशिष्ट शब्दों के अर्थ,
शब्दकोष निर्माण के लिये उपयोगी । अध्याय छह :: ललितकलाएँ और शिल्प
२७१.३४० परिच्छेद १. नाट्यकला ( २७३-२८२)
कु० में नाट्यकला से सम्बन्धित विशिष्ट शब्दों का प्रयोग-नृत्त, लास्यनृत्त, ताण्डवनृत्त-मुंडमाला धारण कर, त्रिनेत्र को खोलकर अट्टहास करते हुए नृत्त करना। नृत्य और नृत्त में भेद। कु० में नृत्य के उल्लेख । नाट्य-भरतशास्त्र में प्रवीण भरतपुत्र, नटों की वेशभूषा, रसाश्रित नाट्य । लोकनाट्य-उद्योतन द्वारा लोकनाट्य का विशेष उल्लेख । नट और नटी द्वारा अभिनय, शृङ्गारिक प्रदर्शन तथा प्रदर्शन के लिए रंगमंच की व्यवस्था । आधुनिक 'मवाईनाट्य' से इस प्रसंग की तुलना। लोकनाट्य के अन्धकार-रासमण्डली, डाँडियांनृत्य, चर्चरोन्त्य, भाण, डोम्बलिक एवं सिग्गडाइय। नाट्य के साथ
संगीत की संगत। परिच्छेद २. वादित्र ( २८३-२९३ )
वादित्रों की सांस्कृतिक उपयोगिता, कु० में उल्लिखित २४ प्रकार के वादित्र। आतोद्य-वाद्यविशेष एवं वाद्यसमूहों का वाचक, तूरमांगलिकवाद्य एवं वाद्य-समूह का द्योतक। ततवाद्य-वीणा, वंसवीणा, त्रिस्बर, नारद-तुम्बरु-तन्त्री। अवनद्धवाद्य-मृदंग, मुरज, • पटु-पटह, ढक्का, भेरी, झल्लिरी एवं डमरूक । सुषिरवाद्य-वेणु, शंख, काहला । धनवाद्य-घंटा, ताल । कुछ अन्य वाद्य-गन्धर्व, तोडहिया
नाद, मंगल, बज्जिर, वव्वीसक, मन आदि । परिच्छेद ३. चित्रकला ( २९४-३०६)
कु० में चित्रकला के पाँच प्रसंग । पटचित्र द्वारा संसार-दर्शन-५२ प्रकार की आकृतियाँ। दो वणिकपुत्रों का कथात्मक चित्र -२० प्रकार की आकृतियाँ। उज्जयिनी की राजकुमारी का चित्र९ विशेषताओं से युक्त। भिति-चित्र, पटचित्र-व्यक्तिगत एवं धार्मिक