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क्रिया - कोश
होकर उसी भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो निर्वाण को प्राप्त होता है तथा सर्व दुःखों का अन्त करता है ।
अभयदेवसूरि ने अंतक्रिया को योगनिरोधाभिधानशुक्लध्यानेन 'सकलकर्मध्वंसरूपा ' कहा है । (भग० श ३३ उ ३ । प्र ११ । टीका ) मूल --- जइ अकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्यंति - जाव बुज्यंति, मुखति, परिणिति, सव्वदुक्खाणं ) अंत करेंति ? हंता ! ( गोयमा ! ) सिज्यंति जाव अंत करेंति ।
-भग० श ४१| उ १ प्र १८ ० ६३५
जो जीव अक्रिय हो जाता है वह उसी भव में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होकर परिनिर्वाण को प्राप्त करता है और सर्वदुःखों का अंत करता है ।
मलयगिरि टीका- 'अन्तक्रिया' मिति अन्तः - अवसानं तत्र प्रस्तावादिह कर्मणासातव्यं अन्यत्रागमेऽन्त क्रियाशब्दस्य रूढत्वात् तस्य क्रिया- करणमन्तक्रियाकर्मान्तकरणं मोक्ष इति भावार्थ:, "कृत्स्नकर्मक्षयान्मोक्षः” इति वचनात् ।
अंत अर्थात् अवसान, किसका अवसान ? कर्मों का । कर्मों के अवसान से मोक्ष होता है अतः कर्मों का क्षयान्त- अवसान अंतक्रिया है ।
०४१३ अहिगरण किरियापवत्तगा
पन्हा अ २ १० १२०७
मूल -- पुणो वि अहिगरण किरियापवत्तगा बहुविहं अणत्थं अवमदं परस्स य करेंति ।
अधिकरण क्रिया का प्रवर्त्तक अर्थात् मिथ्याभाषण रूप अधिकरणों या शस्त्रों से क्रिया में प्रवृत्ति करने वाला व्यक्ति अपना और दूसरों का विनाश करता है ।
हिंसा के अधिकरणों में मिथ्याभाषण भी एक अधिकरण है । यहाँ असत्य का विवेचन होने से अधिकरण में मिथ्याभाषण को ग्रहण किया गया हैं ।
०४१४ अप्पकिरिया - अल्पक्रिया
-भग० श० ५। उ ६ । प्र । पृ० ४८१
थोड़ी –प्रतनु–स्तोक – अल्पक्रिया । अभयदेवसूरि टीका - अल्पशब्दः स्तोकार्थः ।
०४१५ अपसावज्जकिरिया अल्पसावद्यक्रिया
–आया० श्रु २१ अ २ । ३२ । सू ४२ | पृ०५५
सावद्य क्रिया का अभाव ।
साध्वाचार के वसति-विधान के अनुसार भवन-गृह- आवास उपाश्रय आदि भोगने से अल्प सावद्यक्रिया होती है अर्थात् उसमें सावद्यक्रिया का अभाव होता है, ( नवरं अल्पशब्दः अभाववाचीति - टीका ) ।
" Aho Shrutgyanam"