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क्रिया-कोश
इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीव को श्वास या निःश्वास में पृथ्वीकायिकअप्कायिक- अग्निकायिक-वायुकायिक-वनस्पतिकायिक जीवों को ग्रहण करते हुए कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है ।
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*६६-१० कायिक क्रियापंचक और वृक्षादि को कँपाता-नीचे गिराता हुआ वायुकायिक जीव :
वाडका णं भंते! रुक्खस्स मूलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कइ किरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चडकिरिए, सिय पंच किरिए | एवं कंद एवं -जावमूलं, बीयं पचालेमाणे वा० पुच्छा ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकरिए ।
- भग० श ६ | उ ३४ । प्र १३ । पृ० ६१२-१३
वृक्ष के मूल को हिलाते हुए या नीचे गिराते हुए वायुकायिक जीव को कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है । इसी प्रकार कंद, स्कंध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल, बीज को हिलाते हुए या नीचे गिराते हुए वायुकायिक जीव को कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित पाँच क्रिया होती है ।
'६६ ११ कायिक क्रियापंचक और ताल-वृक्ष को कँपाता तथा नीचे गिराता हुआ पुरुष तथा तालफल :--
पुरिसे णं भंते ! तालमारुहइ तालमारुहित्ता तालाओ तालफलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कइ किरिए ? गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे तालमारुहर, तालमारुहित्ता तालाओ तालफलं पचालेइ वा पवाडे वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठे, जेसि पि णं सरीरेहिंतो ताले निव्वत्तिए, तालफले निव्वत्तिए ते विणं जीवा काइयाए जाव - पंचहि किरियाहि पुट्ठा ।
अहे णं भंते! से तालफले अप्पणो गुरूयत्ताए. जाव- -पच्चोवयमाणे जाई तत्थ पाणाई जाव जीवियाओ ववरोवेइ, तपणं भंते! से पुरिसे कइ किरिए ? गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे तलप्फले अप्पणो गुरुयत्ताए जाव--जीवियाओ ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव -- चउहि किरियाहिं पुट्ठे, जेसिंपिणं जीवाणं सरीरेहिंतो तले निव्वत्तिए ते वि णं जीवा काइयाए जाव चउहिं किरियाहिं पुट्ठा; जेसिं पिणं जीवाणं सरीरेहिंतो तालफले निव्वन्ति ते विणं जीबा काश्याए
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