Book Title: Kriya kosha
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 415
________________ क्रिया - कौश ३५९. टीका - द्रव्यप्रत्याख्यानं द्रव्यस्य द्रव्येण द्रव्याद् द्रव्ये द्रव्यभूतस्य वा प्रत्याख्यानम् । तत्र सचित्ताचित्तमिश्रभेदस्य प्रत्याख्यानं द्रव्यनिमित्तं वा प्रत्याख्यानं यथा धम्मिल्लस्य । एवमपराण्यपि कारकाणि स्वधिया योजनीयानि । द्रव्य का, द्रव्य के द्वारा, द्रव्य से, द्रव्य में अथवा द्रव्यभूत का प्रत्याख्यान द्रव्यप्रत्याख्यान है । उसमें सचित्त, अचित तथा मिश्र द्रव्य का प्रत्याख्यान होता है अथवा द्रव्य के निमित्त से प्रत्याख्यान होता है, जैसे धम्मिल्ल ( सुनि ) का । इसी प्रकार द्रव्य - प्रत्याख्यान के दूसरे दूसरे उदाहरण स्व-बुद्धि से नियोजित कर लेने चाहिए । टीका - तत्र दातुमिच्छा दित्सा न दित्सा अदित्सा तया प्रत्याख्यानमदित्साप्रत्याख्यानम् । सत्यपि देये सति च संप्रदानकारके केवलं दातुर्दातुमिच्छा नास्तीत्यतोऽदित्साप्रत्याख्यानम् । देने की इच्छा दित्सा है, दित्सा का अभाव अदित्सा है । अदित्सा से ( प्रेरित होकर ) प्रत्याख्यान करना - अदित्सा - प्रत्याख्यान है । देय वस्तु तथा दान ग्रहण करने योग्य पात्र होने पर भी दाता के देने की अनिच्छा - अदित्सा - प्रत्याख्यान है । टीका तथा प्रतिषेधप्रत्याख्यानमिदम् । तद्यथा- विवक्षितद्रव्याभावाद्विशिष्टसम्प्रदान कारकाभावाद्वा सत्यामपि दित्सायां यः प्रतिषेधस्तत्प्रत्याख्यानम् । प्रतिषेध प्रत्याख्यान इस प्रकार है— दिये जाने वाले द्रव्य के अभाव में अथवा दान ग्रहण करने योग्य पात्र के अभाव में देने की इच्छा होते हुए भी जो प्रतिषेध किया जाता है वह प्रतिषेध प्रत्याख्यान है । टीका - भावप्रत्याख्यानं तु द्विषोऽतःकरणशुद्धस्य साधोः श्रावकस्य वा मूलगुणप्रत्याख्यानमुत्तरगुणप्रत्याख्यानं चेति । च शब्दाद्विविधमपि नोआगमतोभावप्रत्याख्यानं द्रष्टव्यं नान्यदिति । भाव प्रत्याख्यान दो प्रकार का होता है-शुद्ध अन्तःकरण वाले साधु या श्रावक का (१) मूलगुण - प्रत्याख्यान, (२) उत्तरगुण - प्रत्याख्यान | 'च' शब्द से विविध भेदों की शक्यता प्रतीत होती है, पर यहाँ नो- आगम की अपेक्षा से ही भाव प्रत्याख्यान ग्रहण करना चाहिए, अन्य प्रकार से नहीं । टीका साम्प्रतं क्रियापदं निक्षेप्तव्यम् । तच क्रियास्थानाध्ययने निक्षिप्तमिति । न पुनर्निक्षिप्यते । अब क्रियापद का निक्षेप करना चाहिए था पर उसका निक्षेप क्रियास्थान अध्ययन में किया जा चुका है; अतः यहाँ पुनः निक्षेप नहीं किया जाता है । टीका - इह पुनर्भावप्रत्याख्यानेनाधिकार इति दर्शयितुमाह । - "Aho Shrutgyanam"

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