Book Title: Kriya kosha
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 418
________________ क्रिया-कोश . जो द्रव्य क्रियाओं द्वारा सद्भाव से ही निष्पन्न हो वह . स्वभाव किया द्रव्य ___ •०४.५५--किरियाकम्म---क्रियाकर्म । -षट्० पु १३ । पृ• ३८,८८ मूल-जं तं किरियाकर्म णाम ॥२७॥ तमादाहीणं पदाहिणं तिक्खुत्तं तियोणदं चदुसिरं बारसावत्तं तं सव्वं किरियाकम्मं णाम ॥२८॥ कर्म निक्षेप दस प्रकार का होता है उसमें क्रियाकर्म एक प्रकार है । आत्माधीन होना, प्रदक्षिणा करना, तीन बार करना, तीन बार अवनति, चार बार सिर नवाना और बारह आवर्त, यह सब क्रिया कर्म है । "EE २२ श्रावक को पन क्रिया : गुण-वय-सम-पडिमा, दाणं जलगालणं च अणथामियं । दसणणाण-चरितं किरिया तवण्ण सावया भणिया ॥ -पं० दौलतरामजी द्वारा जेन कियाकोष में उद्धत मद्य, मांस, मधु तथा बड़, पीपर, पाकर, डूमर, कठूमर-पाँच कुफल-इन आठ वस्तुओंका त्याग करना-आठ गुण क्रिया, श्रावकके बारह व्रतों को पालन करने की बारह व्रतक्रिया, समष्टि की एक सम्यक्त्व क्रिया, श्रावक की ग्यारह प्रतिमा धारण करने की ग्यारह क्रिया, दान की-आहार, औषधि, शास्त्र तथा अभयदान की चार किया, अणछाणे (बिना छाने ) जलके उपयोग के त्याग की क्रिया, रात्रि भोजन त्याग की क्रिया, ज्ञानदर्शन-चारित्र की तीन क्रिया, तप करने की बारह तप-क्रिया-ये त्रेपन श्रावक की प्रशस्त क्रियाएँ होती है। समाप्त "Aho Shrutgyanam"

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