Book Title: Kriya kosha
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 413
________________ क्रिया - कोश '६६ १८ परस्पर विरोधी क्रियाएँ एक समय में युगपत् नहीं होतीं :गणविसग्गपयन्ता, परोष्परविरोहिणो कहं समए । समए दो उवओगो न होज्ज, किरियाण को दोसो १ ॥ ३४६ परस्पर विरोधी क्रियाएँ एक साथ नहीं होती हैं यथा- किसी वस्तु को ग्रहण करना और छोड़ना युगपत नहीं हो सकता है; आगमानुसार ज्ञान और दर्शन के उपयोग भी एक समय में युगपत् नहीं हो सकते हैं अतः परस्पर विरोधी क्रियाएँ यथा -- सम्यक्त्व तथा मिथ्यात्व क्रियाएँ या सांपरायिको तथा ऐर्यापथिकी क्रियाएँ ( देखें ६४ १ १ तथा ६४'२' १ ) एक समय में युगपत् नहीं हो तो इसमें कोई दोष नहीं है । : - अभिधा । भाग ३ । पृ० ५५० *६६ १६ सूर्य की क्रिया और जम्बुद्वीप जंबुद्दीचे णं भंते! दीवे सूरियाणं किं तीए खेत्ते किरिया कज्जइ, पडुप्पन्ने खेत्ते किरिया कज्जइ, अणागए खेत्ते किरिया कज्जइ ? गोयमा ! नो तीए खेत्ते किरिया कज, पपन्ने खेत्ते किरिया कज्जइ, नो अणागए खेत्तं किरिया कज्जइ । सा भंते ! किं पुट्ठा कजइ अपुट्ठा कज्जर, गोयमा ! पुट्ठा कज्जइ, नो अपुट्ठा ( अष्णपुट्ठा ) कज्जइ, जाव नियमा छद्दिसिं । - भग० श ८ । उ८ । प्र० ४३-४४ | ० ५६० - जंबु० । वक्ष ७ । सू १२ | पृ० ६५१ जंबुद्वीप में सूर्य की क्रिया अतीत तथा अनागत क्षेत्र में नहीं होती है, वर्तमान क्षेत्र में होती है तथा वह क्रिया स्पृष्ट होकर ही होती है, स्पृष्ट नहीं होकर नहीं होती है, यावत् यह सूर्यक्रिया छहों दिशाओं से होती है । सूर्य की क्रिया सम्भवतः अवभास-उद्योत - ताप - प्रकाश रूप होती है और यह क्रिया सूर्य की लेश्या के द्वारा ही जम्बुद्वीप में होती है । "Aho Shrutgyanam" *६६२० भुलावण ( प्रतिसन्दर्भ के पाठ ) (क) जीवेणं भंते! अंतकिरियं करेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए करेज्जा, अत्थेगए नो करेजा अंत किरियापयं नेयव्वं । -भग श १ । उ २ । प्र १०७ । पृ० ३६४ प्रज्ञापना अंतक्रिया पद २० की भुलावण - (ख) छउत्थे णं भंते ! मणूसे तीय-मणंतसासयं समयं केवलेणं संजमेणं० १

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