Book Title: Kriya kosha
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 411
________________ क्रिया-कोश "दो क्रियाओं का युगपत संवेदन उपयुक्त होता है क्योंकि मुझे भी शीत-उष्ण-दोनों का अनुभव नदी पार करते हुए समकाल में हुआ अतः अनुभव-सिद्ध होने से दो क्रियाओं का युगपत् संवेदन होना ठीक लगता है। मेरे पैरों में शीतलता का अनुभव तथा मस्तक में उष्णता का अनुभव समकाल में हो रहा था । यह कैसे ?" . आचार्य धनगुप्त ने कहा-"आयुष्मन् । तुमने दो क्रियाओं का युगपत् अनुभव किया वह तरतम योग से क्रमशः हुआ था न कि युगपत हुआ था। तुम उनके क्रमभाव को लक्ष्य नहीं कर सके ! समय- आवलिकादि की सूक्ष्मता के कारण, मन की अति चंचलता के कारण, अतीन्द्रिय तथा शीघ्रगति वाला होने से तुम्हें ऐसी भ्रांति हो रही थी कि दोनों अनुभव एक साथ ही हो रहे है। स्पर्श आदि द्रव्येन्द्रिय से सम्बन्ध रखने वाले जिस देश से मन का सम्बन्ध जिस समय जितना होता है उस समय उतना ही ज्ञान होता है। शीतोष्ण आदि का ज्ञान भी वहीं होगा जहाँ इन्द्रिय के साथ मन का पदार्थ से सम्बन्ध होगा। जहाँ मन का सम्बन्ध नहीं होता है वहाँ ज्ञान भी नहीं होता है । इस कारण से दूर और भिन्न देशों में हो रही दी क्रियाओं का अनुभव एक साथ व एक समय में नहीं हो सकता । पैर और सिर में होने वाले भिन्न-भिन्न शीतलता और उष्णता के अनुभव भी एक साथ नहीं हो सकते । इसलिए यह कहा जाता है कि पैर और सिर में होने वाले शीतलता और उष्णता के अनुभव भी एक साथ नहीं हो सकते हैं क्योंकि वे भिन्न-भिन्न देश में होते है । जिस तरह विन्ध्याचल और हिमालय के शिखरों को कोई एक साथ छू नहीं सकता। अतः क्रियान्यवादत्व का हेतु असिद्ध है। जीव उपयोगमय है। वह जिस समय, जिस इन्द्रिय के द्वारा जिस विषय के साथ उपयुक्त होता है उसीका ज्ञान होता है, दूसरे पदार्थों का ज्ञान नहीं कर सकता, जैसे मेघ के उपयोग में लगा हुआ बालक दूसरी सब वस्तुओं को भूल जाता है । जीव एक समय में एक ही जगह सरी जगह नहीं। इसलिए एक साथ एक समय में दो क्रियाओं का अनुभव असिद्ध है। ब Wrim - ६६ १६ दो कियावादी निह्नव की परभव में उत्पत्ति: से जे इमे गामागार जाव सण्णिवेसेसु णिण्हगा भवंति। तंजहा-बहुरया, जीवपरसिया, अव्वत्तिया, सामुच्छेइया, दोकिरिया, तेरासिया, अबद्धिया। . इच्च ते सत्त पवयणणिण्हगा केवल(लं)-चरिया लिंग-सामण्णा मिच्छदिट्ठी "Aho Shrutgyanam"

Loading...

Page Navigation
1 ... 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428