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क्रिया - कोश
अक्रियावादी भवनपति देव भवसिद्धिक तथा अभवसिद्धिक होते हैं ।
सविशेषण अक्रियावादी भवनपति देवों के सम्बन्ध में जैसा सविशेषण औधिक अक्रियावादी जीव के सम्बन्ध में कहा वैसा ही कहना लेकिन भवनपति देवों के जो-जो विशेषण पाये जायँ उन उन विशेषणों से कहना ।
अक्रियावादी पृथ्वी - अप्-अग्नि वायु-वनस्पतिकायिक जीव भवसिद्धिक भी, अभवसिद्धिक भी होते हैं ।
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सविशेषण अक्रियावादी पृथ्वी- अप्-अग्नि वायु-वनस्पतिकायिक जीवों के सम्बन्ध में जैसा सविशेषण औधिक अक्रियावादी जीव के सम्बन्ध में कहा वैसा ही कहना लेकिन पृथ्वी- अप्-अग्नि-वायु-वनस्पतिकायिक जीवों के जो-जो विशेषण पाये जायँ उन-उन विशेषणों से कहना
अक्रियावादी द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय जीव भवसिद्धिक भी, अभवसिद्धिक भी होते हैं ।
सविशेषण अक्रियावादी द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में जैसा सविशेषण औधिक अक्रियावादी जीव के सम्बन्ध में कहा वैसा ही कहना लेकिन द्वीन्द्रियश्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रिय जीवों के जो-जो विशेषण पाये जायँ उन-उन विशेषणों से कहना ; लेकिन सम्यक्त्व, ज्ञान, मति श्रुतज्ञान अवस्था में अक्रियावादी द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय जीव केवल भवसिद्धिक होते हैं ।
अक्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक जीव भवसिद्धिक भी, अभवसिद्धिक भी
होते हैं ।
सविशेषण अक्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक जीवों के सम्बन्ध में जैसा सविशेषण औधिक अक्रियावादी जीव के सम्बन्ध में कहा वैसा हो कहना लेकिन पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों के जो-जो विशेषण पाये जायँ उन-उन विशेषणों से कहना ।
अक्रियावादी मनुष्य भवसिद्धिक भी, अभवसिद्धिक भी होते हैं ।
सविशेषण अक्रियावादी औधिक जीव के सम्बन्ध में जैसा कहा वैसा ही सभी विशेषणों सहित अक्रियावादी मनुष्य जीव के सम्बन्ध में जानना ।
अक्रियावादी वाणव्यन्तर- ज्योतिषी - वैमानिक देव भवसिद्धिक भी, अभवसिद्धिक भी होते हैं ।
सविशेषण अक्रियावादी वाणव्यन्तर-ज्योतिषी-वैमानिक देवों के सम्बन्ध में जैसा सविशेषण औधिक अक्रियावादी जीव के सम्बन्ध में कहा वैसा ही कहना लेकिन अक्रियावादी वाणव्यन्तर-ज्योतिषी वैमानिक देवों के जो-जो विशेषण पाये जायँ उन-उन विशेषणों से कहना ।
" Aho Shrutgyanam"