Book Title: Kriya kosha
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 404
________________ ३४० क्रिया-कोश होते हैं परन्तु महाकर्म वाले, महा क्रिया वाले, महात्रव वाले, महावेदना वाले नहीं होते हैं। छट्ठी तमप्रभा नारकी के नरकावासों में स्थित नारकी जीव पाँचवीं धूमप्रभा पृथ्वी के नारकी जीवों की अपेक्षा महाकर्म वाले, महा क्रिया वाले, महास्रव वाले, महावेदना वाले होते हैं परन्तु अल्पकर्म वाले, अल्पक्रिया वाले, अल्पास्त्रव वाले, अल्पवेदना वाले नहीं होते है। ___इसी प्रकार पाँचवीं पृथ्वी के नारकी जीवों की छही पृथ्वी के नारकी जीवों के साथ तथा पाँचवों पृथ्वी के नारकी जीवों की चौथी पृथ्वी के नारकी जीवों के साथ ; इसी प्रकार चौथी पृथ्वी के नारकी जीवों की पाँचवीं पृथ्वी के नारकी जीवों से तथा चौथी पृथ्वी के नारकी जीवों की तीसरी पृथ्वी के नारकी जीवों से, इसी प्रकार तीसरी पृथ्वी के नारकी जीवों की चौथी पृथ्वी के नारकी जीवों से तथा तीसरी पृथ्वी के नारकी जीवों की दूसरी पृथ्वी के नारकी जीवों से ; दूसरी पृथ्वी के नारकी जीवों की तीसरी पृथ्वी के नारकी जीवों से तथा दूसरी पृथ्वी के नारकी जीवों की पहली पृथ्वी के नारकी जीवों से ; पहली पृथ्वी के नारकी जीवों की दूसरी पृथ्वी के नारको जीवों से--तुलना करनी चाहिए। ६ मायिमिथ्यादृष्टि तथा अमायिसम्यग्दृष्टि जीवों की अपेक्षा : दो भंते ! नेरझ्या एगंसि नेरइयावासंसि नेरइयत्ताए उववन्ना, तत्थ णं एगे नेरइए महाकम्मतराए चेव जाव महावेयणतराए चेव, एगे नेरइए अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव; से कहमेयं भंते! एवं ? गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा--मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नगा य अमायिसम्मदिट्ठिउववन्नगा य । तत्थ णं जे से मायिमिच्छदिट्ठि उववन्नए नेरइए से णं महाकम्मतराए चेव जाव- महावेयणतराए चेव ; तत्थ गंजे से अमायिसम्मदिट्ठिउववन्नए नेरइए से णं अप्पकम्मतराए चेव जाव - अप्पवेयणतराए चेव । दो भंते ! असुरकुमारा० एवं चेव, एवं एगिदिय-विगलिंदियवन जाव वेमाणिया। -भग• श १८ । उ ५। प्र ३ । पृ० ७७०-७१ दो नारकीजो एक नरकावास में नारकी रूप में एक साथ उत्पन्न होते है उनमें से एक महाकर्मतर, महाक्रियातर, महास्रवतर, महावेदनातर होता है तथा एक अल्पकर्मतर, एक अल्पक्रियातर, अल्पासवतर, अल्पवेदनातर होता है। नारकी दो प्रकार के होते हैं यथा मयिमिथ्याष्टि-उपपन्नक तथा अमायिसम्यग्दृष्टि-उपपन्नक । उनमें से जो माथिमिथ्याष्टि "Aho Shrutgyanam"

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