Book Title: Kriya kosha
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 402
________________ ३३८ क्रिया-कोश आत्मा सुरूपपन में, सुवर्ण पन में, सुगन्धपन में, सुरसपन में, इष्टपन में, कान्तपन में, मनोज्ञपने में, मनामपन में, इप्सितपन में, उत्कृष्टपन में, ऊर्ध्वपन में, अदुःखपन में, सुखपन में बारम्बार परिणत होती है। जिस प्रकार कोई मलिन, कादा लगा हुआ, मैला कुचैला, धूल से भरा वस्त्र हो, उसको क्रमशः शुद्ध करने पर और शुद्ध पानी से धोनेपर उसपर लगे हुए मैल के पुद्गल सर्वतः भेद होते हैं, छेद होते हैं यावत् सुपरिणाम में परिणत होते हैं उसी प्रकार अल्पास्त्रव-अल्प कर्म अल्प क्रिया-अल्पवेदना वाला जीव उपर्युक्त प्रकार से प्रशस्त परिणामों को प्राप्त होता है। ४ अग्नि जलाते-बुझाते पुरुष की अपेक्षा :-- दो भंते ! पुरिसा सरिसया जाव सरिसभंडमत्तोवगरणा अन्नमन्नेणं सद्धिं अगणिकायं समारंभंति तत्थ णं एगे पुरिसे अगणिकायं उजालेइ एगे पुरिसे अगणिकायं निव्वावे, एएसि णं भंते ! दोण्हं पुरिसाणं कयरे पुरिसे महाकम्मतराए चेव महाकिरियतराए चेव महासवतराए चेव महावेयणतराए चेव ? कयरे वा पुरिसे अष्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव ? जे वा से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेइ, जे वा से पुरिसे अगणिकायं निव्वावेइ ? कालोदाई ! तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेइ से णं पुरिसे मद्दाकम्मतराए चेव जाव महावेयणतराए चेव, तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं निव्वावेझ से णं पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव । से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-तत्थ णं जे से पुरिसे जाव अप्पवेयणतराए चव ? कालोदाई ! तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेइ से णं पुरिसे बहुतरागं पुढविकायं समारंभइ, बहुतरागं आउकायं समारंभइ, अप्पतरायं तेउकायं समारंभइ, बहुतरागं वाउकायं समारंभइ, बहुतरायं वणस्सइकायं समारंभइ, बहुतरागं तसकायं समारंभइ, तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं निव्वावेइ से णं पुरिसे अप्पतरागं पुढविकायं समारंभइ, अप्पतरागं आउक्कायं समारंभइ, बहुतरागं तेउक्कायं समारंभइ, अप्पतरागं वाउकायं समारंभइ, अप्पतरागं वणस्सइकायं समारंभई, अप्पतरागं तसकायं समारंभइ से तेण?णं कालोदाई ! जाव अप्पवेयणतराए चेव ।। ---भग० श ७ । उ १० । प्र६ | पृ० ५२६ दो सरीखे पुरुष ( समान वय, समान शक्ति ) समान भांड, पात्रादि उपकरण वाले है, वे पुरुष यदि परस्पर एक साथ अग्निकाय का समारंभ करते हैं और उनमें से एक अग्निकाय को जलाता है तथा दूसरा अग्निकाय को बुझाता है तो अग्निकाय को जलाने वाला पुरुष महाकर्म वाला, महा क्रिया वाला, महास्रव वाला तथा महा वेदना वाला "Aho Shrutgyanam"

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