Book Title: Kriya kosha
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 401
________________ क्रिया - कोश ३३७ महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महास्रव वाले और महावेदना वाले जीव के सर्वतः अर्थात् सभी ओर से और सभी प्रकार से पुद्गलों का बंध होता है, सर्वतः पुद्गलों का चय होता है, सर्वतः पुद्गलोंका उपचय होता है; सदा निरंतर पुद्गलों का बंध होता है, सदा निरन्तर पुद्गलों का चय होता है, सदा निरन्तर पुद्गलों का उपचय होता है; सदा निरंतर उसकी आत्मा दुरूपपन में, दुर्वर्णपन में, दुर्गंधपन में, दु:रसपन में दुःस्पर्शपन में, अनिष्टपन में, अकान्तपन में, अप्रियपन में, अशुभपन में, अमनोज्ञपन में, अमनापन में ( मन से भी जिसका स्मरण न किया जा सके ) अनीप्सितपन में ( अनिच्छितपन में ) अभीध्यितपन में (जिसको प्राप्त करने के लिए लोभ न हो ) जधन्यपन में, अनुर्ध्वपन में, दुःखपन में और असुखपन में बार-बार परिणत होती है । जैसे कोई अहत (अपरिभुक्त) जो नहीं पहना गया है, धौत ( पहन करके भी धोया हुआ ), तन्तुगत (मशीन पर से तुरन्त उतरा हुआ ) वस्त्र अनुक्रम से काम में लिया जाने पर, उसके पुद्गल सर्वतः बंधते हैं, सर्वतः चय होते हैं यावत् कालान्तर में वह वस्त्र मैला और दुर्गंध मय हो जाता है; उसी प्रकार महाकर्म- महाक्रिया महाआस्रव - महावेदना वाला जीव उपर्युक्त रूप से अप्रशस्त परिणामों को प्राप्त होता है । ·३ अल्प कर्म - क्रिया- आस्रव वेदना वाले जीव की अपेक्षा सेणू भंते! अप्पाssसवस्स, अप्पकम्मस्स, अप्प किरियरस, अप्पवेयणस्स सव्वओ पोग्गला भिज्जति, सव्वओ पोग्गला छिज्जति, सव्वओ पोग्गला विद्धंसंति, सव्वओ पोग्गला परिविद्धसंति ; सया समियं पोग्गला भिज्जंति, सव्वओ पोग्गला बिज्जति, विद्धस्संति, परिविद्धस्संति, सया समियं च णं तस्स आया सुरुवत्ताए पत्थ यव्वं, जाव - सुहत्ताए – णो दुक्खत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति ? हंता, गोयमा ! जाव परिणमति । से के ? गोयमा ! से जहा णामए वत्थस्स जल्लियस्स वा पंक्रियस्स वा मइल्लियस्स वा इलियरस वा आणुपुवीए परिकम्मिज्जमाणस्स सुद्धेणं वारिणा घोव्वैमाणस्स सव्वओ पोग्गला भिजंति, जाव परिणमंति, से तेणट्टणं । -भग० श ६ । उ ३ । प्र ३, ४ पृ० ४६३ यह निश्चित है कि अल्प आस्रववाले, अल्प कर्मवाले, अल्प क्रियावालें तथा अल्प वेदना वाले जीव के सर्वतः पुद्गल भेद होते हैं, सर्वतः पुद्गल छेद होते हैं, सर्वतः पुद्गल विध्वंस होते हैं, सर्वतः पुद्गल परिविध्वंस होते हैं ; सदा निरन्तर पुद्गल भेद होते हैं ; सदा निरन्तर पुद्गल छेद होते हैं, विध्वंस होते हैं, परिविध्वंस होते हैं; सदा निरन्तर उसकी "Aho Shrutgyanam"

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