Book Title: Kriya kosha
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 390
________________ ३२६ क्रिया-कौश • १८ जैनेतर ग्रन्थों में क्रिया के समतुल्य वर्णन [ जैनेतर ग्रन्थ का 'क्रिया' की अपेक्षा हम विस्तृत अध्ययन नहीं कर सके । पुस्तकों के शेष में शब्द सूची के अभाव में हमारे अनुसंधान में कमी रह गयी । महाभारत के शांति पर्व में हमें क्रिया संबन्धी उपर्युक्त पाठ नहीं मिला। गीता से हमने तीन पाठ लिये :] १ गीता में कर्मसंग्रह का कारण करण-क्रिया [ जिस प्रकार जैनदर्शन में किया—करण को कर्मबन्ध का निमित्त कहा गया है प्रायः उसी प्रकार गीता में करण क्रिया को कर्मसंग्रह का एक कारण बताया गया है । करणं कर्म कर्त्तेति त्रिविधः कर्मसंग्रहः । - गीता० अ १८ श्लो०१८ | उत्तरार्ध शांकरभाष्य- करणं क्रियतेऽनेनेति बाह्य श्रोत्रादि, अन्तस्थं बुद्ध्यादि. कर्मेप्सिततमं कर्तुः क्रियया व्याप्यमानं कर्त्ता करणानां व्यापारयितोपाधिलक्षण इति त्रिविधस्त्रिप्रकारः कर्मसंग्रहः । संगृह्यतेऽस्मिन्निति संग्रहः कर्मणः संग्रहः कर्मसंग्रहः । करण अर्थात् जिससे क्रिया की जाती है । करण के दो भेद हैं- बाह्य और अन्तस्थ बाह्य किया श्रोत्रेन्द्रिय आदि से होती है तथा अन्तस्थक्रिया बुद्धि आदि से होती । इच्छापूर्वक जो क्रिया की जाय वह कर्म है ! बाह्य तथा अन्तस्थ करणों से व्यापार करता हुआ उपाधिलक्षण कर्त्ता है—इन तीनों से कर्म संग्रह होता है । २ गीता में सर्वारम्भपरित्यागी आत्मासर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते ॥ - गीता० अ १४ । श्लो २५ । उत्तरार्ध शांकरभाष्य - सर्वारम्भपरित्यागी दृष्टादृष्टार्थानि कर्माण्यारभ्यन्त इत्यारम्भाः सर्वानारम्भान्परित्यक्तुं शीलमस्येति सर्वारम्भपरित्यागी देहधारणमात्रनिमित्तव्यतिरेकेण सर्वकर्मपरित्यागीत्यर्थः । दृष्ट अदृष्ट अर्थों -- कर्मों को जो किया जाय-- वह आरंभ है। जिसका शील-धर्म सर्व आरम्भ परित्याग करने का है वह सर्वारम्भपरित्यागी । देह धारण निमित्त जो कर्म करने पड़े उनको छोड़कर सर्व कर्म आरम्भ का परित्याग करने वाला - सर्वारम्भपरित्यागी । '३ गीता में कर्मों से लिप्त न होनेवाली आत्मायोगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न "Aho Shrutgyanam" जितेन्द्रियः । लिप्यते ॥ -- गीता० अ ५ । श्लो ७

Loading...

Page Navigation
1 ... 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428