Book Title: Kriya kosha
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 371
________________ क्रिया-कौश ६२.६७ अनंतरोपपन्नक अक्रियावादी और जीवदंडक अतरोववन्नगा णं भंते xxx भाणियव्वा । : ( पूरे पाठ के लिये देखिये क्रमांक ६२४°३'३ ) अनन्तरोपपन्नक नारकी अक्रियावादी भी होते हैं; क्रियावादी, अज्ञानवादी तथा विनयवादी भी होते हैं । जैसी वक्तव्यता औधिक अक्रियावादी जीव के सम्बन्ध में ( ६२६४ ) कही गई है वैसी ही वक्तव्यता अक्रियावादी अनन्तरोपपन्नक जीव के सम्बन्ध में कहनी चाहिए; इतनी विशेषता है कि अक्रियावादी अनन्तरोपपन्नक जीव में सलेशी यावत् अनाकारोपयोग तक जो-जो विशेषण पाये जायँ उन-उन विशेषणों से विवेचन करना चाहिए । ३०७ '६२'६८ अनंतरोपपन्नक अक्रियावादी जीव और आयुष्य का बंधन किरियावाई णं भंते! अणंतरोववन्नगा नेरश्या किं नेरइयाज्यं पकरेंतिपुच्छा । गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरि०, नो मणु०, नो देवाउयं पकरेंति । एवं अकिरियाबाई वि अन्नाणियवाई वि वेणइयवाई वि । सलेस्सा णं भंते! किरियाबाई अनंतरोववन्नगा नेरइया किं नेरइयाउयं०पुच्छा । गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, जाव नो देवाड्यं पकरेंति । एवं जाव वेमाणिया । एवं सव्वट्टाणेसु वि अनंतरोववन्नगा नेरख्या न किंचि वि आउयं पकरेंति जाव - अणागारोवउत्त त्ति । एवं जाव वैमाणिया, नवरं जं जस्स अस्थि तं तरस भाणियव्वं । -भग० श ३० उ२ । प्र ३, ४ । पृ० ६०६ कोई भी अक्रियावादी अनन्तरोपपन्नक जीव किसी भी प्रकार का आयुष्य नहीं बाँधते हैं ! I : "Aho Shrutgyanam" -६२६'६ अणंतरोपपन्नक अक्रियावादी जीव और भव अभवसिद्धिकता :अकिरियावाई णं (भंते ! ) पुच्छा । गोयमा ! भवसिद्धिया वि, अभवसिद्धिया वि 1 xxx 1 सस्सा णं भंते! किरियाबाई अणंतरोववन्नगा नेरइया किं भवसिद्धिया, अभवसिद्धिया ? गोयमा ! भवसिद्धिया, नो अभवसिद्धिया । एवं एएणं अभिलावेणं जव ओहिए उद्देसए नेरइयाणं वतव्वया भणिया तद्देव इह वि भाणियव्वा जाबअणागारोवउत्त त्ति । एवं जाव वैमाणियाणं । नवरं जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणियव्वं । -भग० श ३० । उ २ । प्र ६,७ । पृ० ६०६-१० afararदी नारकी जीव भवसिद्धिक भी तथा अभवसिद्धिक भी होते हैं ।

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