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क्रिया-कोश
-६६-१७ कर्म बाँधता हुआ जीव और कायिकी क्रियापंचक
जीवे णं भंते! णाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणे कइ किरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंच किरिए, एवं नेरइए जाव वेमाणिए ।
जीवा णं भंते! णाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणा कर किरिया ? गोयमा ! ( सिय) तिकिरिया वि ( सिय) चउकिरिया वि ( सिय) पंचकिरिया वि, एवं नेरइया निरंतरं जाव वैमाणिया ।
एवं दरिसणावर णिज्ज, वेयणिज्ज', मोहणिज्ज आउयं, नाम, गोयं, अंतराइयं च अट्ठविहकम्मपगडीओ भाणियव्वाओ, एगत्तपोहत्तिया सोलस दंडगा ( भवंति ) । - पण्ण० प २२ । सू १५८५-८७ । पृ० ४८० प्राणातिपात क्रिया करता हुआ जीव सात । आठ कर्म प्रकृतियाँ बाँधता है । अब प्रश्न होता है कर्म - प्रकृति बाँधते हुए जीव को ( प्राणातिपात सम्बन्धी ) कितनी क्रियाएँ होती हैं ।
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प्राणातिपात या हिंसा का कार्य तीन भूमिका में समाप्त होता है । प्रथम स्थान में कायिकी क्रियापंचक की तीन क्रियाएँ होती हैं, द्वितीय स्थान में चार क्रियाएँ होती हैं, प्राणातिपात पूर्ण होने पर पाँच क्रियाएँ होती हैं ।
कहा भी है :
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"तिसृभिश्चतसृभिरथ पञ्चभिश्च हिंसा समाप्यते
क्रमशः ।
बन्धोऽस्य विशिष्टः स्यात् योगद्वेषसाम्यं चेत् ॥” कायिकी व्यापार की तत्परता, अधिकरणों का ग्रहण - सज्जा- तैयारी, पकडूंगा, बाधूंगा, मारूंगा -- ऐसा अप्रशस्त मन का होना यह प्रथम भूमिका है; इसके पश्चात् जब जीव को किसी अधिकरण के द्वारा कष्ट – वेदना पहुँचाई जाती है तब दूसरी भूमिका होती है। इसके बाद जब अधिकरण से आहत जीव का प्राणवध हो जाता है तब हिंसाकार्य समाप्त हो जाता है ।
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जीव का एकवचन सोलह दण्डक होते हैं ।
ज्ञानावरणीयादि आठों कर्म प्रकृतियों को बाँधता हुआ जीव या तो तीन क्रिया करता है, या चार या पाँच क्रिया । नारकी आदि यावत् वैमानिक तक दण्डक का जीव इसी प्रकार कर्म प्रकृतियों को बाँधता हुआ तीन, चार या पाँच क्रिया करता है ।
जीव ( बहुवचन) भी ज्ञानावरणीयादि सात/आठ कर्म-प्रकृति बाँधते हुए तीन, चार या पाँच क्रियाएँ करते हैं । नारकी जीव ( बहुवचन ) भी यावत वैमानिक तक दण्डक के जीवों के कर्म - प्रकृति बाँधते हुए तीन, चार या पाँच क्रियाएँ करते हैं । बहुवचन तथा आठ कर्म प्रकृतियों के अलग-अलग विवेचन से
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