Book Title: Kriya kosha
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 348
________________ क्रिया कोश जीवलोक, क्षेत्रलोक, काललोक, आत्मप्रदेशलोक आदि को मित--परिमित मानने वाला--मितवादी है। वह किसी को असंख्यात या अनंत नहीं मानता है । मितवादी के मत का प्रतिपादन : अनन्तानन्तत्वेऽपि जीवानां मितान्-परिमितान् वदति 'उत्सन्नभव्यकं भविष्यति भुवनमित्यभ्युपगमात् मितं वा जीवं-अंगुष्ठपर्वमानं श्यामाकतन्दुलमात्रं वा वदति न त्वपरिमितमसंख्येयप्रदेशात्मकतया अंगुलासंख्येयभागादारभ्य यावल्लोकमापूरयतीत्येवमनियतप्रमाणतया वा, अथवा मितं सप्तद्वीपसमुद्रात्मकतया लोकवदत्यन्यथाभूतमपीति मितवादीति, तस्याप्यक्रियावादित्वं वस्तुतत्त्वनिषेधनादेवेति । -- ठाण° स्था ८ । सू.६०७ । टीका मितवादियों का कथन है कि यह संसार अनन्तान्त जीव वाला नहीं है पर परिमित संख्यक जीव वाला है । यह संसार अनन्त काल तक नहीं रहेगा तथा इस संसार का (मित) भविष्य में प्रलय के द्वारा उच्छेद होगा। आत्मा को वे असंख्येय प्रदेशात्मक न मानकर अंगुष्ठपर्व मात्र या श्यामाकतन्दुल मात्र मित मानते हैं। इस लोक को वे सात द्वीप-समुद्र रूप मित मानते हैं, कोई मितवादी इसको अन्य प्रकार से भी मित मानते हैं। उनके उपर्युक्त कथन वस्तुतत्त्व से विपरीत है अतः उनको अक्रियावादी कहा जाता है । '४ निर्मितवादी-ईश्वरकारणिकवादी परिभाषा / अर्थ(१) निर्मितं ईश्वरब्रह्मपुरुषादिना कृतं लोकं वदतीति निम्मितवादी । -ठाण० स्था८।सू ६०७ । टीका (२) इह खलु धर्माः स्वभावाश्चेतनाचेतनरूपाः पुरुष-ईश्वर-आत्मा वा कारणमादिर्येषां ते पुरुषादिका ईश्वरकारणिका आत्मकारणिका वा तथा पुरुष एवोत्तरं कायं येषां ते पुरुषोत्तरास्तथा पुरुषेण प्रणीताः सर्वस्य तदधिष्ठितत्वात् तदात्मकत्वाद्वा तथा पुरुषेण द्योतिताः प्रकाशीकृताः प्रदीपमणिसूर्यादिनेव घटपटादय इति । --सूय० श्रु २ । अ १ । सू ११ । टीका "Aho Shrutgyanam"

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