Book Title: Kriya kosha
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 337
________________ क्रिया-कोश २७३ '६२ ४.३६ परंपरोपपन्नक क्रियावादी (समदृष्टि ) जीव और जीवदंडक, आयुष्य ___ बंधन और भवसिद्धिकता : परंपरोववन्नगा णं भंते ! नेरच्या किरियावाई० ? एवं जहेव ओहिओ उद्देसओ तहेव परंपरोववन्नएसु वि नेरइयादीओ तहेव निरवसेसं भाणियव्वं, तहेव तियदंडगसंगहिओ। -भग० श ३० । उ ३ । प्र१। पृ० ६१० परंपरोपपन्नक क्रियावादो जीव के सम्बन्ध में वैसी ही वक्तव्यता जाननी चाहिए जैसी औधिक क्रियावादी जीव के सम्बन्ध में (देखो ६२.४ ३ ३-४ ) वक्तव्यता कही गई है । २४.३.१० अनंतरावगाढ-अनंतराहारक-अनंतरपर्याप्त क्रियावादी (समदृष्टि) जीव और जीवदंडक, आयुष्य का बंधन और भवसिद्धिकता :६२.४ ३११ परंपरावगाढ-परंपराहारक-परंपरपर्याप्त क्रियावादी (समदृष्टि) जीव और जीवदंडक, आयुष्य का बंधन और भवसिद्धिकता :'६२.४ ३ १२ चरम-अचरम क्रियावादी ( समदृष्टि) जीव और जीवदंडक, आयुष्य बंधन और भवसिद्धिकता :एवं एएणं कमेणं जच्चेव बंधिसएउद्देसगाणं परिवाडीसच्चेव इहं पिजाव-अचरिमो उद्देसो । नवरं अणंतरा चत्तारि वि एक्कगमगा, परंपरा चत्तारि वि एकगमएणं । एवं चरिमा वि, अचरिमा वि एवं चेव । नवरं ( अचरिमे ) अलेस्सी केवली अजोगी न भन्नइ, सेसं तहेव । --भग० श ३० ! उ ४-११ । पृ०६१० अनन्तरावगाढ, अनन्तराहारक, अनन्तरपर्याप्त क्रियावादी समदृष्टि जीव का गमक अनन्तरोपपन्नक क्रियावादी जीव की तरह कहना अर्थात् क्रियावादत्व, आयुष्य का बंधन तथा भव-अभवसिद्धिकता के सम्बन्ध में वैसा ही वक्तव्य कहना जैसा अनन्तरोपपन्नक क्रियावादी जीव के सम्बन्ध में कहा गया है ( देखो क्रमांक ६२४३६-८)। परम्परावगाढ़, परम्पराहारक, परम्पर पर्याप्त क्रियावादी समष्टि जीव का गमक परम्परोपपन्नक क्रियावादी जीव की तरह कहना। चरम क्रियावादी जीव का वक्तव्य परम्परोपपन्नक क्रियावादी जीव की तरह कहना । अचरम क्रियावादो जीव का वक्तव्य औधिक क्रियावादी जीव की तरह कहना लेकिन अलेशी, केवली तथा अयोगी विशेषणों सहित विवेचन नहीं करना । "Aho Shrutgyanam"

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