Book Title: Kriya kosha
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 336
________________ क्रिया-कोश अनन्तरोपन्नक नारकी क्रियावादी भी होते हैं, अक्रियावादी, अज्ञानवादी तथा विनयवादी भी होते हैं । २७२ जैसी वक्तव्यता औधिक क्रियावादी जीव के सम्बन्ध में ( क्रमांक ६२४३ ) कही गई है वैसी ही वक्तव्यता क्रियावादी अनन्तरोपपन्नक जीव के सम्बन्ध में कहना चाहिए इतना विशेष कि क्रियावादी अनन्तरोपपन्नक जीव में सलेशी यावत् अनाकारोपयोग तक जो-जो विशेषण पाये जायँ उन उन विशेषणों से विवेचन करना चाहिए । *१२·४·३७ अनंतरोपपन्नक क्रियावादी (समदृष्टि ) जीव और आयुष्य का बंधन किरियाबाई णं भंते ! अणंतरोववन्नगा नेवूया कि नेरइयाज्यं पकरतिपुच्छा । गोयमा ! नो नेरइयाज्यं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, नो मस्साज्यं करेंति, नो देवाउयं पकरेंति । xxx | सलेस्सा णं भंते! किरियावाई अनंतत्रवन्नगा नेरख्या किं नेरइयाज्यं - पुच्छा । नो नेरख्या उयं पकरेंति, जाव -- नो देवायं पकरेंति ! एवं जाव - वेमाणिया । एवं सव्वठ्ठाणेसु वि अनंतरोववन्नगा नेरख्या न किंचि वि आउयं पकरेंति जाव - अणागारोव उत्तत्ति । एवं जाव- - वैमाणिया नवरं जं जस्स अत्थि तं तस्स भाणियव्वं । ( प्र ३-४ ) - भग० श ३० । उ २ । प्र ३४ । पृ० ६०६ कोई भी वादवाले अनन्तरोपपन्नक जीव किसी भी प्रकार का आयुष्य नहीं बांधते हैं । '६२४३८ अनंतरोपपन्नक ( समदृष्टि ) क्रियावादी जीव और भवसिद्धकताकिरियाबाई णं भंते ! अनंतरोववन्नगा नेरइया किं भवसिद्धिया, अभवसिद्धिया ? गोयमा ! भवसिद्धिया, नो अभवसिद्धिया । xxx । सलेक्सा णं भंते ! किरियाबाई अतरोववन्नगा नेरइया किं भवसिद्धिया, अभवसिद्धिया ? गोयमा ! भवसिद्धिया, नो अभवसिद्धिया । एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिए उद्देसए नेरइयाणं वत्तव्वया भणिया तहेव इह वि भाणियव्वा जाव -अणागारोवउत्तत्ति । एवं जाव वैमाणियाणं । नवरं जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणियव्वं । इमं से लक्खणं जे किरियावाई सुरक्खिया- सम्मामिच्छादिट्ठीया एए सव्वे भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया, सेसा सव्वे भवसिद्धिया वि, अभवसिद्धिया वि । - भग० श ३० उ० २ । प्र ५ व ७ । पृ० ६०६-१० क्रियावादी जीव मात्र भवसिद्धिक होते हैं, अभवसिद्धिक नहीं । अनन्तरोपपन्नक " Aho Shrutgyanam" - -

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