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-- क्रिया-कोश असञ्चामोसमणजोग जुजइ ? गोयमा ! सच्चमणजोगं जुजइ, नो मोसमणजोगं जुजइ, नो सच्चामोसमणजोगं जुजइ, असञ्चामोसमणजोगं [ पि] जुंजइ ।
वइजोगं जुंजमाणे किं सञ्चवइजोगं झुंजइ, मोसवइजोगं झुंजइ, [ किं] सञ्चामोसवइजोगं मुंजइ, असच्चामोसवइजोगं जुजइ ? गोयमा ! सञ्चवइजोगं झुंजइ, नो मोसवइजोगं जुजइ, नो सच्चामोसवइजोगं झुंजइ, असञ्चामोसवइजोगं पि जुजइ।
____ कायजोगं मुंजमाणे आगच्छेज वा गच्छेज्ज वा चिट्ठज वा निसीएज्ज वा तुयट्टेज वा उल्लंघेज वा पलंघेज वा [ उवक्खेवणं वा अवक्खेवणं वा तिरियक्खेवणं वा करेजा ] पाडिहारियं पीढफलगसेज्जासंथारगं पञ्चप्पिणेजा।। से गं तहा सजोगी सिझइ जाव अंतं करेइ ? गोयमा ! णो इण? सम? ।
--पण्ण ० प ३६ । सू. २१७४-७५ । पृ० ५३२-३३ केवली समुद्घात को करता हुआ या प्राप्त होता हुआ जीव उस अवस्था में सिद्धबुद्ध मुक्त नहीं होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त नहीं होता है तथा सर्व दुःखों का अन्त नहीं करता है।
समुद्घात से निवृत्त होने के बाद वे केवली मन-वचन-काययोग का व्यापार करते हैं, यदि वे मनोयोग का व्यापार करते हैं तो वे सत्यमनोयोग तथा व्यवहार मनोयोग का व्यापार करते हैं। यदि वे वचनयोग का व्यापार करते है तो वे सत्यवचनयोग तथा व्यवहार वचनयोग का व्यापार करते हैं। काययोग का व्यापार करते हुए वे आते हैं, जाते हैं, खड़े होते हैं, आलोटन करते हैं, उल्लंघन करते है, प्रलंघन करते हैं, पास में रहे हुए प्रातिहारिक-पीठ-आसन-फलक, पाट्टिया, शय्या तथा संथारा वापस देते हैं । अतः यह कहा जाता है कि समुद्घात के बाद के उक्त सयोगी अवस्था में जीव सिद्ध-बुद्ध-मुक्त नहीं होता है यावत सर्व दुःखों का अन्त नहीं करता है ।
.७३.१३ विभिन्न जीव और अन्तक्रिया :•७३.१३.१ क्षत्रिय और अन्तक्रिया :
उम्गा भोगा राइन्ना इक्खागा नाया कोरव्वा एए णं अस्सिं धम्मे ओगाहंति, अस्सिं धम्मे ओगाहित्ता अट्टविहं कम्मरयमलं पवाहेति, अट्ठविहकम्मरयमलं पवाहित्ता तओ पच्छा सिझंति, जाव-अंतं करेंति ? . हता, गोयमा ! जे इमे उग्गा भोगा सं चेव जाव-अंतं करेंति, अत्थेगड्या अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति ।
-भग० श २० । उ८।प्र१५। पृ०८०५ २६
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