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क्रिया-कोश
सके उतने समय में वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र इन चार कर्मों का युगपत् क्षय करता है । इस ध्यान में समस्त यौगिक क्रियाओं का समुच्छेद करके जीव अक्रिय हो जाता है।
-उत्तर अ २६ । सू ७३ । पृ० १०३६ ठाण० स्था ४ । उ १ । सू २४७ । पृ० २२४
०४ ४६ सावज्जकिरिया - सावद्यक्रिया
यदि कोई भवन - गृह धर्मशाला उपाश्रय आदि विभिन्न भिक्षु भिखारी इत्यादि के रहने के उद्देश्य से बनाया गया हो तो भोगने से साधु को सावद्य क्रिया होती है ।
— आया० श्रु २ । अ२ । उ२ । सू ४० | पृ० ५५
प्रकार के साधु श्रमणउसमें रहने से, उसको - देखो भिक्षु और क्रिया
१० सुहुम किरिया अप्पडिवाई ( अनियट्टि )
'उत्तरायण' में 'सुहुमकिरियं अप्पडिवाई' तथा ठाणांग में सुहुम किरिए अनियट्टि रूप मिलता है । यह शुक्लध्यान का तीसरा भेद है। निर्वाण गमन के समय केवली के मन तथा वचन- योगों का सम्पूर्ण तथा कायन्योग का अर्ध निरोध होता है । इस समय उनके सूक्ष्मक्रिया अप्रतिपाती ( अनियडि ) शुक्लध्यान होता है । ऐसी अवस्था में जीव इस ध्यान के द्वारा खासोच्छवासादि के सिवाय अन्य सूक्ष्म यौगिक क्रियाओं का निरोध कर देता है । - उत्त० अ २६ / सू० ७३ | पृ० १०३६ --- ठाण० स्था ४ । उ १ । सू २४७ | पृ० २२४
०४५१ सुहुमा इरियावहिया किरिया - सूक्ष्म ऐर्यापथिक क्रिया
-भग० श ३ । उ ३ । पृ० ४५८ जिसका कर्मबन्ध काल सूक्ष्म हो, दो समय मात्र हो तथा चलने-फिरने-बैठने यावत् आँख की पुतली के फड़कने मात्र से होती हो अर्थात् जो केवल योगप्रत्यय से होती हो वह मात्र सातावेदनीय कर्म का बंध करने वाली क्रिया-सूक्ष्म ऐर्यापथिक क्रिया होती है । -- देखो क्रमांक ३७ ऐर्यापथिकी क्रिया
०४५२ सूरकिरिया विसिद्धो
-- ठाण० स्था ४ | उ १ | सू २६४ । टीका में
उद्धृत सूर्य या सूर्य के प्रकाश के भ्रमण की वह क्रिया - विशिष्ट जिससे अद्धाकाल अर्थात् समयावलिका आदि का परिमाण सहज भाव से जाना जाता है ।
०५ परिभाषा के उपयोगी पाठ
क्रिया की परिभाषा के उपयोगी मूल पाठ उपलब्ध नहीं हुए हैं ।
"Aho Shrutgyanam"