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क्रिया-कोश .०४.६ अकिरिया-अक्रिया
-ठाण० स्था ८ उ३ । सू६०७ । पृ० २८८। मोक्ष आदि की प्राप्ति के हेतु धर्मानुष्ठानिक क्रिया को अनावश्यकता-एक प्रकार की नास्तिकता। .०४.७ अकिरियाकुसल - अक्रियाकुशल -सूय० श्रु २ । अ ४ । सू १ । पृ० १६६ ।
मूल-आया अकिरियाकुसले यावि भवइ । ____टीका-सदनुष्ठानं क्रिया तस्यां कुशलः क्रियाकुशलस्तत्प्रतिषेधाद क्रियाकुशलोप्यात्मा भवति।
असदनुष्ठान क्रियाओं में कुशल-प्रवीण-अक्रियाकुशल । .०४८ अकिरियावाई-अक्रियावादी– सूय श्रु १ । अ १२ । गा ४ । पृ० १२८ ।
मूल -णो किरियमाहंसु अकिरियवाई। अक्रियावादी कहते है कि क्रिया नहीं है अतः तज्जनित कर्मबंधन नहीं है । क्रियां जीवादिपदार्थोस्तीत्यादिकां वदितुं शीलं येषां ते क्रियावादिनः। एतद्विपर्यस्ता अक्रियावादिनः।
-सूय० श्रु ११ अ १२ । गा १ । टीका जो जीवादि पदार्थों के अस्तित्व को नहीं मानते हैं वे अक्रियावादी ।
अक्रियावादी अनेक तरह के होते हैं और वे नाना प्रकार के दृष्टिकोण से उक्त मत की प्ररूपणा करते हैं ।। 'ठाणांग' में अक्रियावादियों के मुख्यतया आठ भेद बताये गये हैं, यथा
मूल अट्ट अकिरियावाई पन्नत्ता, तंजहा-एगावाई, अणेगावाई, मितवाई, निम्मितवाई, सायवाई, समुच्छेदवाई, णियावाई, न सन्ति परलोगवाई।
-ठाण० स्था ८ । उ ३ । सू.६०७ । पृ० २८८ (१) एकवादी, (२) अनेकवादी, (३) मितवादी, (४) निर्मितवादी, (५) सातवादी, (६) समुच्छेदवादी (क्षणिकवादी ), (७) नित्यवादी और (८) नास्ति मोक्ष-परलोकवादी । .०४.६ अकिरिया ( वाय)–अक्रियावाद
-सूय० शु १ ! अ १२ ! सू१ 1 पृ० १२७ मूल-चत्तारि समोसरणाणिमाणि, पावादुया जाई पुढो वयंति ।
किरियं अकिरियं विणयं ति तइयं अत्राणमासु चउत्थमेव ।। क्रिया के अस्तित्व तथा / अथवा आवश्यकता को नहीं मानने वाला मत–अक्रियावाद । विभिन्न दृष्टिकोण से क्रिया के अस्तित्व को नहीं मानने के कारण अक्रियावाद के अनेक रूप होते हैं।
जीव-अजीवादि पदार्थों के अस्तित्व को नहीं मानने वाला मत अक्रियावाद ।
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