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जो रोचक वाद-विवाद होता है और दोनों एक-दूसरे को दोषी ठहराने का प्रयास करते हैं । कवि ने एक से एक सुन्दर युक्ति द्वारा चेतन एवं पुदगल के पक्ष को प्रस्तुत किया है वह उसकी अगाध विद्वत्ता का परिचायक है साथ ही कवि के प्राध्यात्मिक होने का संकेत है। सार जन माहित्य में इस प्रकार ह म इच: है : इन तीन कृतियों के अतिरिक्त 'नमीश्वर का बारहमासा' लिख कर कवि ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि जन कवि जब वियोग शृगार काव्य लिखने बैठते हैं तो उसमें भी बे पीछे नहीं रहते । इसी तरह 'नेमिनाथ वसन्त', 'टंडाणा गीत' एक प्रन्य गीत हैं। अब तक कवि की ११ कुतियों का मैने राजस्थान के जैन सन्न' में उल्लेख किया था किन्तु बड़ी प्रसन्नता है कि कवि की पाठ और कृतियों को खोज निकाला गया है और सभी के पाठ इस में दिये गये है।
इस पुष्प के द्वितीय कवि है छोहल, जिनके सम्बन्ध में रामचन्द्र शुक्ल से लेकर सभी आधुनिक विद्वानों ने अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास में चर्चा की है। स्वीहल कवि एक प्रोर "पंच सहेली गीत" जैसी लौकिक रचना करते हैं तो दूसरी मोर 'बावनी' जैसी विविध विषय परक रचना लिखने में सिसहस्त है । छोहल की 'पंच सहेली गोत' रचना बहुत ही मामिक रचना है । प्रस्तुत पुष्प में हम श्रीहल की सभी छह रचनाओं को प्रकाशित कर सके है ।
चतुरुमल तीसरे कवि हैं। कवि के अभी तक चार गीत एवं एक 'नेमीश्वर को उरगानो कृति मिल सकी है। ये ग्वालियर के निवासी थे 1 संवा १५७१ में निबद्ध 'मीश्वर का उरगानो' कवि की सुन्दर कृति है । अब तक पतुरु की केवल एकमात्र रखना का ही उल्लेख हुआ था लेकिन प्रब उसके चार गीत प्रौर प्राप्त हो गये हैं जो हमारे इस पुष्प की शोभा बढ़ा रहे हैं।
गारवदास हमारे चतुर्थ कवि हैं जिनकी एकमात्र रचना "यशोधर चौपई" अभी तक प्राप्त हो सकी है। लेकिन यह एक रचना ही उनकी अमर यशोगाथा के लिए पर्याप्त है। महाकवि तुलसी के रामचरित मानस के पूरे १०० वर्ष पूर्व चौपई छन्द में निबद्ध यशोधर चौपई हिन्दी को बेजोड़ रचना है 1 अभी तक गारवदास हिन्दी जगत् के लिये ही नहीं, जैन जगत् के लिए भी प्रज्ञात से ही थे 1 चौपई में ५४० पद्य है जिनमें कुछ संस्कृत एवं प्राकृत गाथाएं भी हैं।
ठक्कुरसी इस पुष्प के पांचवें एवं अन्तिम कवि हैं । ठकुरसी ढूढाहा प्रदेश के प्रमुख नगर चम्पावती के निवासी थे। इनके पिता बेल्ह भी कवि थे। इसलिए ठक्कुरसी को कान्य रचना को रुचि जन्म से ही मिली थी। ठक्कुरसी की अभी तक १५ रचनाएँ प्राप्त हुई हैं जिनमें "मेघमाला कहा" अपभ्रश की कृति है बाकी सब