Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 13
________________ लेखक की ओर से हिन्दी साहित्य कितना विशाल एवं विविध परक है इसका अनुमान लगाना ही कठिन हैं। इस हिन्दी साहित्य को अंकुरित पल्लवित एवं विकसित करने में जैन कवियों ने जो योगदान दिया है उसके शतांश का भी प्रकाशन एवं मूल्यांकन वित्रों में नहीं हो है 1 जो भपनी लेखनी चलायी वह प्रद्भुत है । जैसे-जैसे ये श्रज्ञात कवि हमारे सामने आते जाते हैं हम उनके महत्व से परिचित होते जाते हैं तथा दांतों तले अंगुली दबाने लगते हैं । प्रस्तुत पुष्प में संवत् १५६१ से १६०० तक होने वाले ४० वर्षों के पांच प्रमुख कवियों का परिचय प्रस्तुत किया गया है। ये कवि हैं ब्रह्म बृजराज, छीहल, चतुरूमल, गारवदास एवं टक्कुरसी 1 वैसे इन वर्षों में और भी कवि हुए जिनकी संख्या १३ है। जिनका संक्षिप्त परिचय प्रारम्भ में दिया गया है। लेकिन इन पांच कवियों को हम इन ४० वर्षों का प्रतिनिधि कवि कह सकते हैं। इन कवियों मैं से गारवदास को छोड़कर किसी ने भी यद्यपि प्रबन्ध काव्य नहीं लिखे किन्तु उस समय की मांग के अनुसार छोटे-छोटे काव्यों की रचना कर जन साधारण को हिन्दी की मोर श्राकषित किया। अभी तक इन कवियों के सामान्य परिचय के प्रतिरिक्त न उनका विस्तृत मूल्यांकन ही हो सका तथा न उनकी मूल रचनाओं को पढ़ने का पाठकों को प्रवसर प्राप्त हो सका। इसलिए इन कवियों द्वारा रचित सभी रचनाएँ जिनकी संख्या ४४ है प्रथम बार पाठकों के सम्मुख बा रही है। इनके अतिरिक्त इनमें से कम से कम १५ रचनाएँ तो ऐसी हैं जिनका नामोल्लेख भी प्रथम बार ही प्राप्त होगा । हिन्दी साहित्य के इतिहास में संवत् १५६१ से १६०० तक के काल को भक्ति काल माना है किन्तु जैन कवि किसी काल प्रथवा सीमा विशेष में नहीं बंधे । उन्होंने जन सामान्य को मच्छा से मच्छा साहित्य देने का प्रयास किया । ब्रह्म बूवराज रूपक काव्यों के निर्माता थे। उनका 'मयणजुज्झ' एवं 'संतोष जयतिलकु' दोनों ही सुन्दर एवं महत्वपूर्ण रूपक काव्य हैं जिनका पाठक प्रस्तुत पुस्तक में रसास्वादन कर सकेंगे। इसी तरह बूचराज की "चेतन पुद्गल धमाल" उत्तरप्रत्युत्तर के रूप में लिखी हुई बहूत ही उत्तम रचना है। चेतन एव पुद्गल के मध्य

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