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किया । अपभ्रंश में साहित्य सृजन का युग समाप्त हो रहा था, और पिछले लगभग दोसौ वर्षों से जो हिन्दी शन:-मानैः उसका स्थान लेती आ रही थी, उसने अपने स्वरूप का स्थैर्य बहुत कुछ प्राप्त कर लिया था। मुगल सम्राट अकबर का शासन अभी प्रारम्भ नहीं हुअा था-उसके शासनकाल में ही हिन्दी जैन साहित्य का स्वर्णयुग प्रारम्भ हुग्रा को पगले लगभग तीन सौ वर्ष तक चलता रहा ।
प्रस्तु इस ग्रन्थ में चर्चित अपने युग के उक्त प्रतिनिधि कवियों का, न केवल हिन्दी जैन साहित्य के नरन् समग्र हिन्दी साहित्य के इतिहास में अपना एक महत्व है, जिसे समझने में अकादमी का यह प्रकाशन सहायक होगा । खोज निरन्तर चलती रहती है, और भावी लेखक अपने पूर्ववर्ती लेखकों की उपलब्धियों के सहारे ही आगे बढ़ते हैं । आशा है कि श्री महावीर ग्रन्य अकादमी की यह पुष्प वृखला घालु रहेगी और हिन्बी जैन साहित्य के अध्ययन एवं समुचित मूल्यांकन की प्रगति में अतीव सहायक होगी। योजना की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामना है।
ज्योतिप्रसाद जैन वरबारीलाल कोठिया मिलापचन्द्र शास्त्री