Book Title: Karmagrantha Part 3 Bandh Swamitva Nama Tika
Author(s): Devendrasuri, Abhayshekharsuri, Dhirajlal D Mehta
Publisher: Jain Dharm Prasaran Trust Surat

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Page 8
________________ બંધસ્વામિત્વ નામા તૃતીય કર્મગ્રંથની મૂળ ગાથાઓ बंधविहाणविमुक्कं, वंदिय सिरिवद्धमाणजिणचंदं । गइयाईसु वुच्छं, समासओ बंधसामित्तं ॥ १ ॥ गइ इंदिए य काए, जोए वेए कसाय नाणे य । संजमदंसणलेसा, भव सम्मे सन्नि आहारे ॥ २ ॥ जिण सुरविउव्वाहारदु, देवाउ य निरयसुहुमविगलतिगं । एगिदि थावरायव, नपु-मिच्छं हुंड छेवटुं ॥ ३॥ अणमझागिइसंघयण-कुखगनियइत्थिदुहगथीणतिगं । उज्जोय तिरिदुर्ग, तिरिनराउ नरउरलदुगरिसहं ॥ ४॥ युग्मम् सुरइगुणवीसवजं, इगसउ ओहेण बंधहिं निरया । तित्थ विणा मिच्छि सयं, सासणि नपु चउ विणा छन्नुई ॥५॥ विणु अणछवीस मीसे, बिसयरि सम्मंमि जिणनराउ जुया । इय रयणाइसु भंगो, पंकाइसु तित्थयरहीणो ॥ ६॥ अजिणमणुआउ ओहे, सत्तमिए नरदुगुच्चविणु मिच्छे । इगनवई सासाणे, तिरिआउ नपुंसचउवजं ॥ ७॥ अणचउवीसविरहिया, सनरदुगुच्चा य सयरि मीसदुगे । सतरसओ ओहि मिच्छे, पजतिरिया विणु जिणाहारं ॥ ८॥ विणु नरयसोल सासणि, सुराउ अण एगतीस विणु मीसे । ससुराउ सयरि सम्मे, बीयकसाए विणा देसे ॥ ९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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